में देखता हु
खुद को आटे के साथ गूंथते
घिसे हैं मेरे हाथ
बर्तनों को मांझते हुए भी
झाड़ू पोंछा कर
चमक उठता हु
फर्श की तरह में भी
चखता हु स्वाद
जली रोटी या सब्जी में
नमक मिर्च के बिगड़े अनुपात का
कमर को सीधा करते हुए
में लगा पता हु ठीक ठीक हिसाब
उनके तथाकथित कामों का
Wednesday, December 15, 2010
Saturday, October 16, 2010
सपना
सपना
मेरी बगल में पड़ी है लाश
हूबहू मुझ जैसी
यदि चेहरा ना हो नोंचा हुआ
एक लाश और गिरती है
एक दम पास
में सहम जाता हूँ
कांपने लगता है शरीर
रोंयें खड़े हो जाते हैं
रंग उड़ गया चहरे का
लगता है
थूक भी निगला नहीं जा रहा
लाश मेरी ही थी
दिल इसमें से निकाल लिया गया है
उसकी जगह खून से लथपथ
लटकती नशों के बीच
देखा जा सकता है
हाथ के आर पार का रास्ता
एक लाश ठीक मुझ पर
गिरना चाहती है
में चिल्लाना चाहता हूँ
चीखना चाहता हूँ
उसे गिरने से रोकना चाहता हूँ
हाथ, पैर हिल नहीं रहे हैं
जीभ में भी कोई हरकत नहीं
बस आँखें है जो देखती रहती हैं
जनता हूँ में सपना देख रहा हूँ
लेकिन जागते समाया भी ऐसा बहुत होता है
की सब कुछ आँखों के सामने होता है
हाथ पैर जीभ
सब कुछ रहता है जडवत ही
ऐसे समय पर पहले राम का नाम लेता था
आजकल लेता हूँ एक लम्बी सांस
बनाने लगता हूँ एक चित्र
आने वाले सुंदर पलों का
आँख धीरे धीरे खुल जाती है
अपने आस पास देखता हूँ
अभी कुछ लोग जिन्दा है
मेरी बगल में पड़ी है लाश
हूबहू मुझ जैसी
यदि चेहरा ना हो नोंचा हुआ
एक लाश और गिरती है
एक दम पास
में सहम जाता हूँ
कांपने लगता है शरीर
रोंयें खड़े हो जाते हैं
रंग उड़ गया चहरे का
लगता है
थूक भी निगला नहीं जा रहा
लाश मेरी ही थी
दिल इसमें से निकाल लिया गया है
उसकी जगह खून से लथपथ
लटकती नशों के बीच
देखा जा सकता है
हाथ के आर पार का रास्ता
एक लाश ठीक मुझ पर
गिरना चाहती है
में चिल्लाना चाहता हूँ
चीखना चाहता हूँ
उसे गिरने से रोकना चाहता हूँ
हाथ, पैर हिल नहीं रहे हैं
जीभ में भी कोई हरकत नहीं
बस आँखें है जो देखती रहती हैं
जनता हूँ में सपना देख रहा हूँ
लेकिन जागते समाया भी ऐसा बहुत होता है
की सब कुछ आँखों के सामने होता है
हाथ पैर जीभ
सब कुछ रहता है जडवत ही
ऐसे समय पर पहले राम का नाम लेता था
आजकल लेता हूँ एक लम्बी सांस
बनाने लगता हूँ एक चित्र
आने वाले सुंदर पलों का
आँख धीरे धीरे खुल जाती है
अपने आस पास देखता हूँ
अभी कुछ लोग जिन्दा है
Saturday, October 9, 2010
नाटक दृश्य असल दृश्य
नाटक दृश्य असल दृश्य
नाटक में बलात्कार का दृश्य
अकेली लड़की, चार गुर्गे
भागमभाग,
पुराना मकान, चीख
लड़की की हिम्मत गाँव इक्कठा
सरपंच बेईज्जत
असल दृश्य
विवाह समारोह
बगल में
विधवा स्त्री का मकान
देवर का हमला
विधवा आगे देवर पीछे
होता रहा बलात्कार
लोग बने रहे मूकदर्शक
फटी आँखों से देखता रहा में भी
Thursday, September 23, 2010
मूल्यवान चीज
जब तुम कह रही थी
हमारे बीच ऐसा कुछ था ही नहीं
जिसे तुम खो सको
उस समय में अपनी सबसे
मूल्यवान चीज खो रहा था
हमारे बीच ऐसा कुछ था ही नहीं
जिसे तुम खो सको
उस समय में अपनी सबसे
मूल्यवान चीज खो रहा था
Tuesday, September 14, 2010
Wednesday, July 28, 2010
aamantran
दोस्तों काफी दिनों बाद दस्तक दे रहा हूँ लेकिन आप सब के लिए खुश खबरी ये है की राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के साठ हमने मतलब जन नाट्य मंच कुरुक्षेत्र ने तीस दिवसीय ( १ से ३० जुलाई ) कार्यशाला का आयोजन किया इसमें तैयार किये गए नाटक ''रह जाएगा ढाई आखर '' की प्रथम प्रस्तुती कुरुक्षेत्र विश्वविध्यालय कुरुक्षेत्र के श्रीमद भगवद गीता सदन ( ऑडीटोरियम ) में की जाएगी जिसका समाया ३० जुलाई को शाम ६ बजे निर्धारित किया गया है कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तोर पर कुलपति डॉ. डी. डी. एस. संधू शिरकत करेंगे . आप सभी इस कार्यक्रम में सपरिवार सादर आमंत्रित हैं
Saturday, June 26, 2010
इस कदर
इस कदर खटकते हैं हम उनकी नज़रों में
हो गए हम भी शामिल उनके भावी खतरों में
खाए जाती है उन्हें बस हमारी चिंता
जिए जा रहे हैं भला हम कैसे कतरों में
सुन लेते हैं कान उनके भीतर तक की बात
उस पर ये भय ना फैले ये सदरों में
उनके हैं सब क ख ग घ और ए बी सी डी भी
फिर भी जाने क्यों जलते हैं ढाई अखरों में
घोंट रहे दम हर घड़ी फिर भी उन्हें चैन कँहा
हो रहे हैं दंग देखकर छाये हमें ख़बरों में
हो गए हम भी शामिल उनके भावी खतरों में
खाए जाती है उन्हें बस हमारी चिंता
जिए जा रहे हैं भला हम कैसे कतरों में
सुन लेते हैं कान उनके भीतर तक की बात
उस पर ये भय ना फैले ये सदरों में
उनके हैं सब क ख ग घ और ए बी सी डी भी
फिर भी जाने क्यों जलते हैं ढाई अखरों में
घोंट रहे दम हर घड़ी फिर भी उन्हें चैन कँहा
हो रहे हैं दंग देखकर छाये हमें ख़बरों में
Thursday, June 10, 2010
विकास
विकास
अब भी बचे हैं दिए
जगमगाते हैं झोंपड़ीनुमा घरों में
परों को मोड़कर सीने से लगाए
सो रहे बच्चे अक्सर जाग जाते हैं
पास से गुजरती रेलगाड़ी की आवाज़ सुनकर
दिन भर भी
घर्र घर्रर धरर धरर ....झूँ ..झप... की आवाज़
पास के हाईवे से आती रहती है
बिजली की तारें
इनसे बचाकर ही निकली हैं
इन्हें मान लिया गया है
भारत की सांस्कृतिक धरोहर
और वे इसे ऐसे ही रखना चाहते हैं संरक्षित
विकास उनसे बाई पास ही किया जाता है
अब भी बचे हैं दिए
जगमगाते हैं झोंपड़ीनुमा घरों में
परों को मोड़कर सीने से लगाए
सो रहे बच्चे अक्सर जाग जाते हैं
पास से गुजरती रेलगाड़ी की आवाज़ सुनकर
दिन भर भी
घर्र घर्रर धरर धरर ....झूँ ..झप... की आवाज़
पास के हाईवे से आती रहती है
बिजली की तारें
इनसे बचाकर ही निकली हैं
इन्हें मान लिया गया है
भारत की सांस्कृतिक धरोहर
और वे इसे ऐसे ही रखना चाहते हैं संरक्षित
विकास उनसे बाई पास ही किया जाता है
Thursday, May 20, 2010
gazal
आज हमारे बीच ये हालात कैसे हैं
समझना ही ना चाहो सवालात कैसे हैं
आईने में तुम ही हो तुम में आईना भी है
बहार निकल आने के खयालात कैसे हैं
हो गयी है जिंदगी चीजों के ऊंचे दाम सी
बचे हुए अब अपने दिन रात कैसे हैं
चहरे की झुलसी खाल में धंसी हुई आँखें
पूछती हैं काबू में ज़ज्बात कैसे हैं
लकवा मारे हमको चाह दौर ए सियासत की है
फिर उमड़े जन सैलाब में जन्झावात कैसे हैं
Thursday, April 29, 2010
ग़ज़ल अपनी अपनी
चल चल के पड़े हैं आन्टन फांसो ने पैर फोड़ा है
घिसी हुई है चप्पल पर कब चलना छोड़ा है
हो गया है तन भी भट्ठे की नीली इंट सा
रखे हाथ पेट पर कब लू में जलना छोड़ा है
अब भी बगल में रेडियो बजता है पांथ में
सर पर चढ़ते सूरज ने कब ढलना छोड़ा है
मंडी में लेकर जाता हूँ मेरे खेत का सोना
बनियों की ललचाती नज़रों ने कब छलना छोड़ा है
जाने बाज़ार के भाव जो भोंहे तन गयी
खाली लोटते हाथ को कब मलना छोड़ा है
जोह रहे थे बात जो बच्चे मेरे आने की
चेहरों को उनके देखकर कब खलना छोड़ा है
Monday, April 26, 2010
दरी
गुड्डी हर रोज
काम से निबट
बिछा लेती है अड्डा
बुनती है दरी
गुनगुनाती है कोई धुन
पुरानी कतरनों के समाया की
ठोंकती है
पंजे से कतरनों को
ताने में पिरोती हुई
कल्पना के पहाड़
जिन्हें देखती रही
घर की चारदीवारी में सिमट कर
दरिया जो बहते रहे रसोई से उसकी आँखों तक
नाव जो छोड़ी है उसने बरसते सावन में
पेड़ जिनसे बतियाती वह अकेले में
सब खुद बा खुद दरी में
उतर आते हैं
छुड़ा लेती है अड्डे से दरी को
वह देखती है ताने की जकदन
और मुस्काती है
दरी सुन्दर है
जिन्हें देखती रही
घर की चारदीवारी में सिमट कर
दरिया जो बहते रहे रसोई से उसकी आँखों तक
नाव जो छोड़ी है उसने बरसते सावन में
पेड़ जिनसे बतियाती वह अकेले में
सब खुद बा खुद दरी में
उतर आते हैं
छुड़ा लेती है अड्डे से दरी को
वह देखती है ताने की जकदन
और मुस्काती है
दरी सुन्दर है
Saturday, April 24, 2010
कुतिया का भोंकना
कुतिया का भोंकना - 1
आज
फिर से
एक बस्ती जला दी गयी
सैंकड़ों खदेड़ दिए गए
अपने घरों से
सब कुछ
मौजूदगी में हुआ
सेवा सुरक्षा सहयोग का
दावा करने वालों के
वे कहते हैं
बात मामूली सी थी
कुतिया भोंकी थी
सब उसी को लेकर हुआ
बाप बेटी की जली लाश चीख रही है
महज़ कुतिया का भोंकना मुद्दा नहीं है
बात है की हमने जुबान क्यों खोली
२
उनकी कुतिया तक का
भोंकना
उन्हें
असहज कर देता है
फिर उनका सबके सामने यूं
सरे आम बोलना
कैसे रास आ सकता है
इसलिए उन्हें कर दिया जाता है
बेदखल
घरों से गाँव से
जिंदगी से भी
आज
फिर से
एक बस्ती जला दी गयी
सैंकड़ों खदेड़ दिए गए
अपने घरों से
सब कुछ
मौजूदगी में हुआ
सेवा सुरक्षा सहयोग का
दावा करने वालों के
वे कहते हैं
बात मामूली सी थी
कुतिया भोंकी थी
सब उसी को लेकर हुआ
बाप बेटी की जली लाश चीख रही है
महज़ कुतिया का भोंकना मुद्दा नहीं है
बात है की हमने जुबान क्यों खोली
२
उनकी कुतिया तक का
भोंकना
उन्हें
असहज कर देता है
फिर उनका सबके सामने यूं
सरे आम बोलना
कैसे रास आ सकता है
इसलिए उन्हें कर दिया जाता है
बेदखल
घरों से गाँव से
जिंदगी से भी
Friday, April 23, 2010
मनोज बबली को समर्पित
आदम ओ होव्वा की औलाद हैं जब
वंस ए पैदाईश के पैमाने क्या हैं
बहते दरिया में मिली जोशे जुनू की लाश
नाम ए इज्जत हालाक के मायने क्या हैं
दोजख हुआ नसीब जो काफिरे इश्क को
देखें हुजूम ए कौम के तराने क्या हैं
बस बे ख्याले इश्क ही लेते नहीं पनाह
फिर लैला ओ मजनू हीर के फ़साने क्या हैं
मवाद बनने लगी है खाल के निचे
जख्म ए ज़हन से मरहम छुपाने क्या हैं
लहर ए समंदर को भला रोक पाया कौन
ये किस दौर की बात है आज ज़माने क्या हैं
वंस ए पैदाईश के पैमाने क्या हैं
बहते दरिया में मिली जोशे जुनू की लाश
नाम ए इज्जत हालाक के मायने क्या हैं
दोजख हुआ नसीब जो काफिरे इश्क को
देखें हुजूम ए कौम के तराने क्या हैं
बस बे ख्याले इश्क ही लेते नहीं पनाह
फिर लैला ओ मजनू हीर के फ़साने क्या हैं
मवाद बनने लगी है खाल के निचे
जख्म ए ज़हन से मरहम छुपाने क्या हैं
लहर ए समंदर को भला रोक पाया कौन
ये किस दौर की बात है आज ज़माने क्या हैं
Tuesday, April 20, 2010
ग़ज़ल
कैसे कहूं की कशमकश में परेशां है आदमी
महफ़िल ए दौरां की अब वजह बची कँहा
उठ रही है बास हर तरफ ज़र्द शिगुफों की
सोचे जहन में ताजगी की मीठी सुगंध कँहा
हो रहे हैं तार तार रिश्ते हर घड़ी
इंसानी रिश्तों सी अब आबो हवा कँहा
कुढने लगा है 'दीप' भी ज़ुल्मते दौरां में
की वाकई आदमी की जगह बची कँहा
हूँ तलाश में उस राह के निशां मिलें कंही
ज़हने वज़न को भांप लिया जाए पल में जँहा
Wednesday, April 7, 2010
पंचाती
हाम सीधे मूंह
थारे तै नी कह सकदे
के
आपनी ज़मीन बेच खोच कै भाजो
इसपे हाम कब्ज़ा करना चाहवां सां
अक
हामानै फलाने रोलै की रडक
क्युकरे काढणी सै
अक
थाम हामनै फूटी आँख नि सुहान्दे
पाछे सी जिस छोरे की बरात में
हामनै ले गे थे
उस बाबत लडूआ कै चक्कर में हाम नि बोले
ज्यांतै
हाम इब कन्ह्वां सां
थारे छोरे अर छोरी के गोत मिलाएँ सें
ये दोनों तो भाहन भाई सें
इब थाम इस गाम में नि रह सकदे
अर जय रहना सै तो उजड़ कै
हाम किसे का बस्दा ढून्ढ नि देख सकदे
थारे तै नी कह सकदे
के
आपनी ज़मीन बेच खोच कै भाजो
इसपे हाम कब्ज़ा करना चाहवां सां
अक
हामानै फलाने रोलै की रडक
क्युकरे काढणी सै
अक
थाम हामनै फूटी आँख नि सुहान्दे
पाछे सी जिस छोरे की बरात में
हामनै ले गे थे
उस बाबत लडूआ कै चक्कर में हाम नि बोले
ज्यांतै
हाम इब कन्ह्वां सां
थारे छोरे अर छोरी के गोत मिलाएँ सें
ये दोनों तो भाहन भाई सें
इब थाम इस गाम में नि रह सकदे
अर जय रहना सै तो उजड़ कै
हाम किसे का बस्दा ढून्ढ नि देख सकदे
Sunday, March 14, 2010
इतने दिन में कँहा था
इन दिनों ब्लॉग पर कुछ लिख नहीं पाया लेकिन पढ़ा जरुर है उसी की चर्चा आप से कर लेता हूँ अभी दो नाटक और एक उपन्यास एक काव्य संग्रह पढ़ा है सभी की मिलीजुली बात करना चाहता हूँ उपन्यास पढ़ा गोर्की का मेरे विश्विद्यालय जिसमे मुझे ख़ास बात यह लगी जो की गोर्की के अन्य उपन्यासों में भी मिलाती है घटनाओं व्यक्तियों का विस्तृत वर्णन बाल की खाल तक निकाल डालते हैं और अपने विचार को लोगो को बहुत साधारण ढंग से उनकी प्रक्रति के विरोधी पत्रों से ही कहलवाते है अपने पुरे दृष्टिकोण को वे एक अद्रिस्ट धागे से दर्शा देते हैं वन्ही गरिष कर्नाड के नाटक हयवदन में मानवीय रिश्तों को बड़ी नाटकीयता से दर्शा रखा है दवियाशक्ति पर भी व्यंग्य इसमें देखने को मिलता है खासकर मनुष्य की दमित इछाऊ का प्रतीकात्मक नाटक है हालांकि पढने में नाटक कंही कंही बोझिल सा हो जाता है लेकिन नाटकीय दृष्टी से यह एक अछि रचना है और कलाकारों के लिए अपनी रचनात्मकता दिखाने का अच्छा मौक़ा भी नाटक देता है वन्ही शेक्शपिअर का जुलियस सीज़र जिसका हिंदी अनुवाद अरविन्द जी ने किया है काव्यात्मक नाटक है जिसके अनुवाद का काम सम्ब्वाथ काठीन काम है जो उन्होंने बखूबी किया है नाटक के सभी मुख्य पात्र सशक्त हैं लेकिन जिस प्रकार नाटक के बारे में सुरुआत में चर्चा की गयी की महाभारत की याद दिलाता है वगरह वगरह मुझे हज़म नहीं हुई हाँ इस नाटक की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है की कशियास ब्र्तुस आदि जनता का राज्य स्थापित करना चाहते हैं लेकिन वे सीज़र को मारकर भी ऐसा नहीं कर पाते अर्थात उनका रास्ता या उनका फैसला सही नहीं उतरता इसमें मूझे लेखक की कमजोरी भी दिखाएइ देती है लेखक स्वयं भी उलझाव की स्थिति में हैं उनके लगभग सभी नाटको का अंत दुखमय है एक एक कर नाटक का हर पात्र आत्महत्या कर लेता है नाटक का एक अन्य पात्र अन्तनी लगभग हीरो की तरह से नाटक को आगे बढाता है अन्यथा नाटक बीच में ही समाप्त लगता है शक्स्पिअर एक महान लेखक हैं लेकिन उनके इस नाटक की कोई दिशा ना होने की कमी बहुत खलती है अब आपको रोमंतिसिस्म में लिए चलता हूँ आलोक श्रीवास्तव का काव्य संग्रह वेरा उन सापनो की कथा कहो पढ़ा प्रेम के विषय पर अछि कवितायें हैं लेखक प्रकृति के बहुत करीब नज़र आते हैं उनकी कविताओं में ऋतुओं का वर्णन काफी है ख़ास तौर पर आज के दौर में जब की प्रेम के विरोध में भुत से पग्गड़ अपने तुर्रे ऊंचे किये हुए हैं खाफ की खाफ प्रेम करने वालों के खिलाफ है असी में कवी का खुलकर अपनी बात कहना मायने रखता है उनकी कविताओं ने प्रेम को बाज़ार के प्रभाव से बचाने की कोशिश की है हालांकि बहुत सी कविताओं में सब्दओं की जादूगरी सब्दों की पुनरावर्ती देखने को मिलती है कनेर के फूल अंजुली में पानी भरने की चाह बहुत सारे अन्य बिम्ब उनकी चाह को दर्शाते हैं उनके एकल प्रेम को दर्शाने वाली कवितायें भी बहुत हैं इस प्रकार कुल मिलाकर इतने दिन ब्लॉग पर उपस्थित ना होने की थोड़ी सी वजह यह है
Sunday, February 14, 2010
हरियाणवी सांग और नाटक

नाटक में अक्स्सर एक सूत्रधार होता है सांग में भी मुख्या संगी जिसे बेड़ेबंद कहते हैं सूत्रधार की भूमिका निभाता है संवाद भी दोनों विधाओं में बोले जाते हैं .बहुत से नाटकों में खासकर पहले के पारम्परिक नाटकों में मसखरा भी एक पात्र होता था सांग में यह भूमिका नकलची अदा करता है .
छायाचित्र : अमित 'मनोज' द्वारा
Friday, February 12, 2010
हरियाणवी संगीत की बात
हरियाणा और हरियाणा की संस्कृति उसमे भी हरियाणवी
संगीत की बात की जाये तो आज जन्हा भी देखो उसकी तूती बोल रही है वर्तमान फिल्मों में हरियाणवी पात्र हरयाणवी संवाद यंहा तक हरियाणवी धुनें भी खासी पर्योग में लायी जा रही हैं फिल्म ओये लक्की ओये में तू राजा की राजदुलारी काफी प्रशिद्ध हुई . फिल्म देव डी में भी ओ परदेशी गीत में हरियाणवी का आभाष होता है फिल्म दे दना दन में मैं तो मरी होती आज मरी होती लड्ग्या बैरी बिछुआ लोकगीत की धून पर एक गीत यू वान्ना किस में या मिस में असे करके एक
गीत है ये प्रयास तो हिंदी फिल्मो में हरयाणवी संगीत की
बढती लोक्पिर्यता को दर्शाते हैं हाल ही मैं सोनू निगम द्वारा फिल्म स्तरीकर में एक गीत चम् चम् गाया गया है जिसका
आलाप रा रा रा राआआआआ ऋ ऋ ऋ ऋ राआआआआ रप ताप रा रा रा हरयाणवी संगीत जो अक्सर हरयाणवी वाद्य वृन्द में बजाय जाता है से लिया गया लगता है आजकल फिल्मो में पात्रों की बात करें तो हाल ही में आ रही फिल्मो में कोई ना कोई पात्र हरयाणवी मिल ही जाता है ख़ास कर हाजिर जवाबी की जन्हा भी जरुरत होती है या हंसी मखोल की उसके लिए हरयाणवी पात्र की जरुरत होती है.
संगीत की बात की जाये तो आज जन्हा भी देखो उसकी तूती बोल रही है वर्तमान फिल्मों में हरियाणवी पात्र हरयाणवी संवाद यंहा तक हरियाणवी धुनें भी खासी पर्योग में लायी जा रही हैं फिल्म ओये लक्की ओये में तू राजा की राजदुलारी काफी प्रशिद्ध हुई . फिल्म देव डी में भी ओ परदेशी गीत में हरियाणवी का आभाष होता है फिल्म दे दना दन में मैं तो मरी होती आज मरी होती लड्ग्या बैरी बिछुआ लोकगीत की धून पर एक गीत यू वान्ना किस में या मिस में असे करके एक

बढती लोक्पिर्यता को दर्शाते हैं हाल ही मैं सोनू निगम द्वारा फिल्म स्तरीकर में एक गीत चम् चम् गाया गया है जिसका
आलाप रा रा रा राआआआआ ऋ ऋ ऋ ऋ राआआआआ रप ताप रा रा रा हरयाणवी संगीत जो अक्सर हरयाणवी वाद्य वृन्द में बजाय जाता है से लिया गया लगता है आजकल फिल्मो में पात्रों की बात करें तो हाल ही में आ रही फिल्मो में कोई ना कोई पात्र हरयाणवी मिल ही जाता है ख़ास कर हाजिर जवाबी की जन्हा भी जरुरत होती है या हंसी मखोल की उसके लिए हरयाणवी पात्र की जरुरत होती है.
Wednesday, February 10, 2010
kurukshetra vishvvidyalya sahitya manch lekhak se milie karyakaram
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ÂèÅUÚU ÚUæðÁæ§üU Ùð ¥ÂÙð ©U‹Øæ⠷𤠥´àæ ·¤æ Á×üÙè ×ð´ ÂæÆU ç·¤Øæ çÁâ·¤æ ¥ÙéßæÎ çãU‹Îè ×ð´ ¥×ëÌ ×ðãUÌæ Ùð ç·¤Øæ ©U‹Øæâ ·¤è ·¤ãUæÙè ¥æçSÅþUØæ ·ð¤ Îæð »ÚUèÕ Õ“ææð´ ·¤è ãñ çÁâ×ð´ ©UÙ ÂÚU Á×üÙè ·ð¤ ØéhU ·¤ð ÂýÖæß ·¤æð ÕÌæØæ ãñUÐ ©U‹Øæâ ·ð¤ ÂæÆU ·ð¤ ÕæÎ ŸææðÌæ âèŠæð M¤Â âð Üð¹·¤ âð M¤ Õ M¤ ãéU° ¥æñÚU ©UÙâð ÂýoA ç·¤° çÁâ×ð´ Á×üÙè ·ð¤ ÕæÚÔU ×ð´ ¥ÂÙè çÁ™ææâæ¥æð´ ·¤æð ÂèÅUÚU ÚUæðÁæ§üU ·ð¤ âæ×Ùð ÚU¹æÐ ÂýoA·¤Ìæü¥æð´ ×ð´ ×ܹæÙ, ¥Â‡ææü ÁÌÙ ¥æçÎ ÀUæ˜ææð´ ·ð¤ âæÍ ÇUæò. ÎðßßýÌ, âãU Âý¿æØü ׊æé ¥æçÎ Ùð Öè ÂýoA ç·¤°Ð
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ÕýÌæðËÌ Õýð�Ì ·¤æð ØæÎ ·¤ÚUÌð ãéU° ÁÙ ÙæÅ÷Ø ×´¿ mUæÚUæ ©UÙ·¤è ·¤çßÌæ ·¤æ ÂæÆU ç·¤Øæ »Øæ °ß´ âæ´S·ë¤çÌ·¤ ·¤æØü·ý × Öè ÂýSÌéÌ ç·¤Øæ »ØæÐ ·¤æØü·ý¤× ·¤è ¥ŠØÿæÌæ Âêßü ·é¤ÜÂçÌ ÇUæò. Öè× çâ´ãU ÎçãUØæ mUæÚUæ ·¤è »§üU °ß´ ·¤æØü·ý¤× ·¤æ â´¿æÜÙ ÇUæò. âéÖæá ¿‹Îý Ùð ç·¤ØæÐ ·¤æØü·ý¤× ×ð´ ·¤æȤè â´�Øæ ×ð´ ÀUæ˜æ ÂýŠØæ·¤ °ß´ ·¤çß ß Üð¹·¤ ×æñÁêÎ ÍðÐ
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·é¤M¤ÿæð˜æ çßEçßlæÜØ âæçãUˆØ ×´¿
ÁÙ ÙæÅ÷Ø ×´¿ ·é¤M¤ÿæð˜æ
Saturday, February 6, 2010
जुल्मतों के दौर में
कमजोरियां
तुम्हारी कोई नहीं थी
मेरी थी एक
मैं करता था प्यार .
बर्तोत्ल्ट ब्रेख्त की यह कविता मानवता को पसंद करने वालों को प्यार करने वालो को बहुत पसंद होगी एक तरफ जन्हा प्यार पर हर फिल्म हित सुपरहिट हो रही है प्यार करने वालो पर किस्से लोकनाट्य के रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं वन्ही प्यार करने वालों को सरेआम क़त्ल कर दिया जाता है बाकायदा पुलिस कस्टडी में भी ह्त्या को अंजाम दिया जाता है फिर तथाकथित समाज सुधारक पगड़ बाँध कर कातिलों को सम्मानित करते हैं प्रेमियों कियो तो बात दूर हद पार वंहा हो जाती है जब ये अपने असंवैधानिक असंवेदनशील फैंसले लेती है पति पत्नी को भाई बहन बनाने के फरमान जारी कर दिए जाते हैं बस में ट्रेन में जन्हा भी देखो लोगों में इन पंचायतो की आलोचना सुय्नाने को मिलती है लेकिन कमजोर सरकारी तंत्र के चलते प्रभुत्ववादी इन पगाद्धारियों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया जाता है सामाजिक मसला कहकर सरकार भी अपनी जिम्मेवारी से बचती नज़र आती हैं आने वाली १० फरवरी को ब्रेख्त का जन्मदिन है जिन्होंने जुल्मतों के दौर में जुल्मतों के गीत गाने का आह्वान किया था अपना सारा जीवन अंधेरों से लड़ते हुए लगा दिया उन्हें सची सर्धांजलि यही होगी की हम सब भी मिलकर जुल्मतों के खिलाफ उठ कर लड़ने के लिए तैयार हो जाए अपने जैसो को ढूँढने की कोशिश कर रहे जो इस मुहीम में पहले से लगे हुए हैं उनका सहयोग करें .
तुम्हारी कोई नहीं थी
मेरी थी एक
मैं करता था प्यार .
बर्तोत्ल्ट ब्रेख्त की यह कविता मानवता को पसंद करने वालों को प्यार करने वालो को बहुत पसंद होगी एक तरफ जन्हा प्यार पर हर फिल्म हित सुपरहिट हो रही है प्यार करने वालो पर किस्से लोकनाट्य के रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं वन्ही प्यार करने वालों को सरेआम क़त्ल कर दिया जाता है बाकायदा पुलिस कस्टडी में भी ह्त्या को अंजाम दिया जाता है फिर तथाकथित समाज सुधारक पगड़ बाँध कर कातिलों को सम्मानित करते हैं प्रेमियों कियो तो बात दूर हद पार वंहा हो जाती है जब ये अपने असंवैधानिक असंवेदनशील फैंसले लेती है पति पत्नी को भाई बहन बनाने के फरमान जारी कर दिए जाते हैं बस में ट्रेन में जन्हा भी देखो लोगों में इन पंचायतो की आलोचना सुय्नाने को मिलती है लेकिन कमजोर सरकारी तंत्र के चलते प्रभुत्ववादी इन पगाद्धारियों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया जाता है सामाजिक मसला कहकर सरकार भी अपनी जिम्मेवारी से बचती नज़र आती हैं आने वाली १० फरवरी को ब्रेख्त का जन्मदिन है जिन्होंने जुल्मतों के दौर में जुल्मतों के गीत गाने का आह्वान किया था अपना सारा जीवन अंधेरों से लड़ते हुए लगा दिया उन्हें सची सर्धांजलि यही होगी की हम सब भी मिलकर जुल्मतों के खिलाफ उठ कर लड़ने के लिए तैयार हो जाए अपने जैसो को ढूँढने की कोशिश कर रहे जो इस मुहीम में पहले से लगे हुए हैं उनका सहयोग करें .
Tuesday, January 26, 2010
गणतंत्र दिवस
गणतंत्र दिवस के अवसर पर बहार निकलने का मौका मलिया सब कुछ सूना सूना सा नज़र आ रहा था सडकें सुनी गलियां सुनी हर तरफ पुलिस की रेकॉर्डेड चेतावनियाँ sunaaei दे रही थी मेरे उठाने से पहले ही राष्ट्रपति का भाषण एवं परेड सब कुछ ख़त्म हो चुका था समाचारों में पढ़ा कोहरा नहीं ढक पाया गणतंत्रता दिवस के जोश को लेकिन तस्वीरें कोहरे से जरुर धुंधली नज़र आ रही थी सच बताऊँ तो जोश असल में गणतंत्रता दिवस का रहा भी नहीं क्योंकि मैंने जिन्हें भी गणतंत्रता की बधाईइ भेजी उनमे से एक दो का ही प्रतिउत्तर मिला दूसरा manhgaaei इतनी हो गयी है की त्यौहार की तरह मना ही नहीं सकते मीठा खाना मिर्चों से भी तीखा लगता है roji roti की fikr में परेड dekhna sabke naseeb का भी नहीं hota fir aarthik mandi से itnaa bhayavah mahaul banaa huaa है sarkaar हो ya neeji parivaar हर तरफ band है rojgaar kahne को तो kah dete hain ham पर mandi का asar नहीं लेकिन andar की baat ye है asar में koi kasar भी नहीं khair ab gantantrta दिवस selebrate तो karnaa था kaise karein samjh नहीं pa रहा koi desh bhagti film dekhi jaye ya bar में masti की jaye, लेकिन in sabse sona uchit lagaa क्योंकि aaj हर koi so रहा है sona aaraam की नहीं mukti का sadhan नज़र aata है bekhabar हो kar karvatein badalte rahna kanhi behtar लगता है samaaj को karaahate hue dekhane से.
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