ब्लॉगवार्ता

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Saturday, December 19, 2009

मुश्किलें


मुश्किलें 

हर तरफ हैं मुश्किलें 
पहाड़ सी 
छाती पे रखा है पत्थर 
बहुत भारी 
उजाला नहीं आता नज़र 
मेरे भीतर की खोह में
झाँक नहीं पाया मैं 
वह अँधेरी रहस्यमयी 
गुफा सी लगती है

आदि और अंत भी होता है 

गुफा की तरह ही 
जिसे समझते हुए भी रहते हैं अनजान
इसके आदि और अंत से 
हम झाड लेते हैं पल्ला 
उन सवालों की तरह 
जो समझ ना आने पर

                                                                                     बन जाते हैं
सर का दर्द
फिर बंद हो जाता है 
मुस्किल का मुस्किल लगना ही

Friday, December 18, 2009


कभी कभी कुछ चित्र एसे बने बानाए  होते हैं जिन पर जो भी कल्पना हम करें वही सार्थक सी लगती जिन्हें हम गौर से देखने लगते हैं चलते चलते अचानक जब मैं रुका तो देखा कुछ है इस समय जब मैं रात को इस भव्य श्री क्रिशन और अर्जुन के रथ पर रौशनी को पड़ते देखता हूँ ये रथ वैसा नहीं है जैसा हम इसे दिन में देखते है चित्र में तो ऐसा लगता है जैसे यह दौड़ रहा है इसी के निचे जो चित्र है उस रस्ते से लगातार चार साल से गुजरता आ रहाहूं लेकिन जितना सुकून इस रस्ते पर मिलता है कंही नहीं मिलता यह है कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से ब्र्हम्सरोवर जाने वाला रास्ता यही एकमात्र जगह बची है जन्हाअ प्रकृति के दर्शन होते हैं लगता है थोड़े दिनों में यह जगह भी छीन जाएगी मनुस्य्ह की आव्स्य्हक्ताएं इन्हें ख़त्म कर यहाँ पर कंक्रीट के जंगल स्थापित करना चाहती है तीसरा जो चित्र आपको नज़र आ रहा है जो आप इसमें देखना चाहोगे वही नज़र आएगा ये आपकी कल्पना शक्ति पर निर्भर करता है पराकरतिक रूप से कभी कभी इतिफाक से कुछ इसी चीजें हमें मिल जाती हैं जिन्हें एक क्षण के लिए खड़े होकर देखने का मन करता है लेकिन भागदौड़ की इस जिंदगी में प्रकृति से रिश्ता जोड़ने का हमारे पास समाया कान्हा है
जगदीप singh

Tuesday, December 15, 2009

दुर्गा पूजा और वे







दुर्गा पूजा का एक दृश्य में यमुना के किनारे ली गई एक तस्वीर

आदमी आदमी से मिलता है


आदमी आदमी से मिलता है , जाने कौन क्या निकलता है .


माथे की सिलवट पढ़ भी ले 
नयनों की भाषा समझ भी ले 
जो बात हों चहरे वाली
उसका भला कोई क्या करले 
जो गिरगिट से रंग बदलता है


भाव की कीमत जाने कौन 
अपना पराया माने कौन
कहते हैं दिल तो पागल है 
फिर दिल की बातें जाने कौन 
जिसे भी देखो हाथ में बस खंज़र ही निकलता है


करे अपमान इंसानओं का 
शिसे सा दिल दीवानों काअ 
क्षणिक मन की चाह यही 
हो खून किसी के अरमानों का
हमदर्द ही जब यंहा जख्मों को कुरेद मचलता है

Monday, December 14, 2009

HARYANVI POEM KHAAP KA KHOP


AAJYAA KARLE PYAAR GORI AAJ DATKAI
TADKAA KISNAI DEKHYA MOT KAD AAN KHATKAI

HEER RANJHA CHALE GAYE MILAN MILAN KI BAAT MAIN
HAATH MALTE RAH GAYE DONO MOT AAYI HAATH MAIN
SOHNI MAHIWAL BHI SAMAA GAYE CHENAAB KE GHAAT MAIN
MATKAA PAAR LAGAA NA PAYA O BHI DOOBYA BAAT MAIN

ISI MULAAKAAT AAVAI YA NA AAVAI HATKAI………….

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KHOP KHAAP KAA GHAR APNE AAP KA KIS KIS TAI JYAAN BACHAALYANGE

SANJAHAA MUMTAAJ BHI AAPAAN NAHI JO TAJMAHAL BANWALYANGE

LAILA MAZNU AAPAAN NAHI JO KALLE DHAKKE KHA LYANGE

RADHAA KRISHAN BHI AAPAAN NAHI JO APNAA MAN SAMJHALYANGE

EK DUJE NAI PAA LYANGE YA BAAT GALE MAIN ATKAI

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LILO CHAMAN SHAKUNTLAA DUSHYANT KE AADAI KISSE GAYE JAAN SAIN

SLEEM ANARKALI ROMIYO JULIET BHI AADAI FILMAAE JAAN SAIN

PYAAR KE KISSE DEKH AANKHYAN TAI NEER BAHAAE JAAN SAIN

BERA NA FER BHI MHARE JISE AADAI KYON MARVAE JAAN SAIN

HEENE KI MAR SAARAI THAADE KA NA BAAL CHATAKAI

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JAGDEEP SINGH RAITHAL AALE TERI BAAT LAGAI SAIN KHAARI

MUNH CHHOTAA SA LERYA H AR BAAT BOLTAA BHARI

CHHATI MAIN GHAA KARTE CHAALAI BOL NAHI SAIN AARI

IB BHI NA SAMAJHGI TAI SAMAJHAI GI KAD PYAARI

MERI JYAAN MARAN MAIN AARI LAGJYAA KAL JE KAI SATKAI

TADKAA KISNAI DEKYA MOT KAD AAN KHATKAI

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