ब्लॉगवार्ता

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Friday, May 13, 2016

चुभन




कोई रातों को उजली करदो
घना अंधेरा चुभता बहुत है

खाक मिली आजादी हमको
गुलाम सवेरा चुभता बहुत है

मेरा कहां कोई महल मकां पर
आलिशान बसेरा चुभता बहुत है

दुश्मन मारे है अलग बात वो
खंजर तेरा चुभता बहुत है




Thursday, May 5, 2016

आओ साथ चलें



चल अपनी आरामगाह से बाहर निकल आ
कि देख के साथ तुझको बढ़े उसका हौसला

अगर किसी की हूक तूझे करती है बेचैन
फिर एक से दो चार सौ होने में है भला

छला गया है वो भी तुझ सा परेशान है
कदम बढ़ा कि निकले शोषितों का काफला

उनकी क्या रीस किजे वे हैं रईस लोग
ऊंगलियों को कर मुट्ठी फिर हो मुकाबला

उनके बही खाते में खराब तेरा है हिसाब

तू भी अपने थैले में कुछ कलम किताब ला 

साथी

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