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Saturday, October 20, 2012

एक नई शुरुआत: रिवाज

एक नई शुरुआत: रिवाज

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Tuesday, September 11, 2012

रिवाज

रिवाज एक

रिवाज है लड़की के लिए
लड़का देखने जाते हैं
लड़की के दादा बाप भाई रिश्तेदार
लड़की की जोड़ी के वर के लिए
लड़की देख लेती है कभी कभी कोई चित्र
लड़के का मिल जाता है कभी कभी
दुल्हे का मोबाइल नंबर भी
कभी कभी लड़की को यह भी नसीब नहीं होता
लड़के का रंग रूप शिक्षा दीक्षा चाल चलन
तय करती हैं
सरकारी नौकरी जमीन जायदाद या
पुस्तैनी कारोबार अच्छा खासा
लड़की को करना पड़ता है कबुल
जोड़ी के वर को
उसकी उम्र चाहे दोगुनी ही क्यों न हो
उसकी शिक्षा चाहे आधी ही क्यों न हो
हो सकता है लड़की के लिए वह
अब तक का भयानक चेहरा भी

रिवाज दो

आज से पति ही परमेश्वर है 
परमेश्वर दहला देता है देह को
पहली ही रात में
स्वीकार ली जाती है
उसकी सत्ता

देवता खुश होते हैं इस समय
दो आत्माओं के मिलन में
आनंदित होते हैं
आलाप विलाप की संयुक्त ध्वनियों से
सार्थक होती है सम्भोग से समाधी की यात्रा
काम से आध्यात्म

बलात्कार के सामाजिक प्रमाणपत्र 
से शुरू होती है
ग्रहस्थ जीवन की यात्रा
रिवाजों के रथ पर

रिवाज तीन

उम्र के आखरी पड़ाव में भी उसे वह भयानक
ही दिखाई देता है
डाली थी जिसके गले में
वर माला नाक को सिकोड़ते हुए
ग्लानिमय हृदय के साथ





Friday, September 7, 2012

यशपाल की कहानियां

मुझे फिल्मे देखने का काफी शोक है अब  मॉल में जाकर शोक पूरा करने की अपनी हैशियत है नहीं इसलिए कई बार विकल्प भी अपनाना पड़ता आज कल यशपाल की कहानियां पढ़ रहा हूँ  सच बताऊ फिल्म की पूर्ति हो रही है कहानियों में घटनाएं पात्र सारे दृश्यमान होकर आप से रु ब रु होने लगते हैं जितना समय लगता है उसमें दो तीन कहानियां पढ़ ही लेता हूँ कमाल की कहानियां हैं रविन्द्रनाथ टैगोर, प्रेमचंद,यशपाल और भीष्म साहनी अब पसंदीदा कहानीकार हो गए हैं यशपाल की कहानियों में एक विशेष बात यह लगती है की कहानी में वर्णन कथाकार नहीं बलिक पात्र करते हैं ऐसा बहुत ही कम साहित्यकार कर पते हैं समय लगा तो कहानियों की विस्तृत समीक्षा भी आपके समक्ष होगी फ़िलहाल इतना ही आप भी पढना चाहे तो आधार प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गयी मात्र ५० रूपये कीमत है 

Wednesday, September 5, 2012

लम्बी रात तेरी याद

एक तो रा बहुत लम्बी

उस पर यादों के नुकीले खंजर
दिन  तो ढल जायेगा काम में
कल फिर होगा मौत का मंजर 
जब से रूठे हो सुखा हूँ 
हरा भरा था हो गया बंजर 
सपने हुए किनारे लहरों संग 
छोड़ दिया क्यों बिच समंदर 
कब तक बात निहारु पिया की 
दीखता नहीं कुछ बाहर अन्दर 

Monday, September 3, 2012

मेरी नयी रचना



यंहा दश्त  ही  दश्त  है रास्ता नजर आया नहीं
पत्तों की चरमराहट से दिल घबराया नहीं

नयी घोषणा है इस  दश्त  की तरक्की की 
तूफान तो बाकी वो तो अभी आया नहीं

कोनसे जंगल से आ रही बहस की आवाजें 
संसद कब से भंग है उसको तो चलाया नहीं 

मेरी परेशानी का सबब जान के वो क्या करेंगे 
चुनाव अभी दूर हैं बिगुल तो बजाय नहीं 

Sunday, September 2, 2012

तुम 

धुँआ बनकर
विलीन हो जाती हो तुम 
यादों के असीम नीले नभ में 
फिर जाने किन घाटियों से उमड़ आती हो 
घटायें लेकर
तुम बरसी या में भीगा 
होश था ही कब 
बस उड़ रहा हु
कभी धुँआ
कभी बदल
तो कभी तेज़ हवाओं की तरह
पत्ता पत्ता झरकर
ठूंठ सा रह जाता हूँ में
जैसे याद नहीं
कोई आंधी बनकर गुजरती हो

Tuesday, February 28, 2012

सच

यह सच है कि वह मरेगा भी जो पैदा हुआ
तो क्या जीना छोड़ दें

सच यह भी है जो जीने कि कोशिश करेगा
मार दिया जायेगा

साथी

मेरे बारे में