सपना
मेरी बगल में पड़ी है लाश
हूबहू मुझ जैसी
यदि चेहरा ना हो नोंचा हुआ
एक लाश और गिरती है
एक दम पास
में सहम जाता हूँ
कांपने लगता है शरीर
रोंयें खड़े हो जाते हैं
रंग उड़ गया चहरे का
लगता है
थूक भी निगला नहीं जा रहा
लाश मेरी ही थी
दिल इसमें से निकाल लिया गया है
उसकी जगह खून से लथपथ
लटकती नशों के बीच
देखा जा सकता है
हाथ के आर पार का रास्ता
एक लाश ठीक मुझ पर
गिरना चाहती है
में चिल्लाना चाहता हूँ
चीखना चाहता हूँ
उसे गिरने से रोकना चाहता हूँ
हाथ, पैर हिल नहीं रहे हैं
जीभ में भी कोई हरकत नहीं
बस आँखें है जो देखती रहती हैं
जनता हूँ में सपना देख रहा हूँ
लेकिन जागते समाया भी ऐसा बहुत होता है
की सब कुछ आँखों के सामने होता है
हाथ पैर जीभ
सब कुछ रहता है जडवत ही
ऐसे समय पर पहले राम का नाम लेता था
आजकल लेता हूँ एक लम्बी सांस
बनाने लगता हूँ एक चित्र
आने वाले सुंदर पलों का
आँख धीरे धीरे खुल जाती है
अपने आस पास देखता हूँ
अभी कुछ लोग जिन्दा है
Saturday, October 16, 2010
Saturday, October 9, 2010
नाटक दृश्य असल दृश्य
नाटक दृश्य असल दृश्य
नाटक में बलात्कार का दृश्य
अकेली लड़की, चार गुर्गे
भागमभाग,
पुराना मकान, चीख
लड़की की हिम्मत गाँव इक्कठा
सरपंच बेईज्जत
असल दृश्य
विवाह समारोह
बगल में
विधवा स्त्री का मकान
देवर का हमला
विधवा आगे देवर पीछे
होता रहा बलात्कार
लोग बने रहे मूकदर्शक
फटी आँखों से देखता रहा में भी
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