ब्लॉगवार्ता

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Wednesday, December 15, 2010

हिसाब

में  देखता  हु 
खुद को आटे के साथ गूंथते
घिसे हैं मेरे हाथ
बर्तनों को मांझते हुए भी
झाड़ू पोंछा कर 
चमक उठता हु 
फर्श की तरह में भी
चखता हु स्वाद 
जली रोटी या सब्जी में 
नमक मिर्च के बिगड़े अनुपात का
कमर को सीधा करते हुए 
में लगा पता हु ठीक ठीक हिसाब 
उनके तथाकथित कामों का 

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