ब्लॉगवार्ता

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Saturday, June 26, 2010

इस कदर

इस कदर खटकते हैं हम उनकी नज़रों में
हो गए हम भी शामिल उनके भावी खतरों में


खाए जाती है उन्हें बस हमारी चिंता
जिए जा रहे हैं भला हम कैसे कतरों में


सुन लेते हैं कान उनके भीतर तक की बात
उस पर ये भय ना फैले ये सदरों में


उनके हैं सब क ख ग घ और ए बी सी  डी भी
फिर भी जाने क्यों जलते हैं ढाई अखरों में


घोंट रहे दम हर घड़ी फिर भी उन्हें चैन कँहा
हो रहे हैं दंग देखकर छाये हमें ख़बरों में

Thursday, June 10, 2010

विकास

विकास

अब भी बचे हैं दिए
जगमगाते हैं झोंपड़ीनुमा घरों में
परों को मोड़कर सीने से लगाए 
सो रहे बच्चे अक्सर जाग जाते हैं
 पास से गुजरती रेलगाड़ी की आवाज़ सुनकर
दिन भर भी
घर्र  घर्रर धरर धरर ....झूँ ..झप... की आवाज़
पास के हाईवे से आती रहती है
बिजली की तारें
इनसे बचाकर ही निकली हैं
इन्हें मान लिया गया है
भारत की सांस्कृतिक धरोहर
और वे इसे ऐसे ही रखना चाहते हैं संरक्षित 
विकास उनसे बाई पास ही किया जाता है  

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