ब्लॉगवार्ता

www.blogvarta.com

Thursday, June 10, 2010

विकास

विकास

अब भी बचे हैं दिए
जगमगाते हैं झोंपड़ीनुमा घरों में
परों को मोड़कर सीने से लगाए 
सो रहे बच्चे अक्सर जाग जाते हैं
 पास से गुजरती रेलगाड़ी की आवाज़ सुनकर
दिन भर भी
घर्र  घर्रर धरर धरर ....झूँ ..झप... की आवाज़
पास के हाईवे से आती रहती है
बिजली की तारें
इनसे बचाकर ही निकली हैं
इन्हें मान लिया गया है
भारत की सांस्कृतिक धरोहर
और वे इसे ऐसे ही रखना चाहते हैं संरक्षित 
विकास उनसे बाई पास ही किया जाता है  

5 comments:

ZEAL said...

wonderful !

अनामिका की सदायें ...... said...

sateek rachna.

दिलीप said...

oh maarmik rachna

Jandunia said...

इस पोस्ट के लिेए साधुवाद

Rahul Singh said...

wyatha se upaji kavita hi vyatha ka shaman bhi karti hai. badhai. aur achhi chijo ki aasha ho rahi hai.

साथी

मेरे बारे में