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Wednesday, December 17, 2014

आतंक का चेहरा

आतंक का चेहरा-1

आतंक
तुम आज फिर आ गए
अपने चेहरे पर विभत्सता का लिबास लिए
ये मासूम बच्चों की चित्कार से
तुम्हारे चेहरे की रौनक बढी हुई
नजर तो नहीं आती
मुझे तो तुम्हारी क्रूरता की
झुर्रियां बढ़ती हुई दिखाई दे रही हैं
इन मासूमों की हत्या से
पा गए तुम्हारे लड़ाके अमरता ?
अपनी इस उज्जड़ता पर
खुश तो बहुत हो गे तुम
अल्लाह ईश्वर गॉड 
जिसे भी तुम मानते हो
वो तुम्हें माफ नहीं करेगा
क्योंकि वो जानता है
तुम क्या कर रहे हो

आतंक का चेहरा-2
बच्चे
सरहद के पार गोलियों से भूनें हों
या सरहद के भीतर
त्रिशुल पर टंगे हों अजन्में
आतंक का चेहरा
मासूमों की सहमीं सिहरी
आंखों में उजागर होता है
निर्दोषों की
चीखों में ही होता है
धर्म की विजय का उद्घोष


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