ब्लॉगवार्ता

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Friday, July 15, 2011

कार्ल मार्क्स

कार्ल मार्क्स

मेरी पहली हड़ताल में

मार्क्स मुझे यूँ मिला



जुलुस के बीच

मेरे कंधे पर उनका बनैर था

जानकी अक्का ने कहा - 'पैचाना इसको'

ये अपना मारकस बाबा

जर्मनी में जन्मा, बोरा भर किताब लिखा

और इंग्लॅण्ड की मिट्टी में मिला



सन्यासी को क्या बाबा

सारी ज़मीन एक च

तेरे जैसे उसके भी चार कच्चे बच्चे थे

मेरी पहली हड़ताल में

मार्क्स मुझे यूँ मिला



बाद में मैं एक सभा में बोल रहा था

- इस मंदी का कारण क्या है ?

गरीबी का गोत्र क्या है ?

फिर से मार्क्स सामने आया

बोला मैं बतलाता हूँ

और फिर बोलता ही रहा धडाधड



परसों एक गेट सभा में भाषण सुनते खडा था

मैंने कहा - "अब इतिहास के नायक हम ही हैं

इसके बाद के सभी चरित्रों के भी"

तब उसने ही जोर से ताली बजाई

खिलखिलाकर हंसते, आगे आते

कंधे पर हाथ रख कर बोला

' अरे कविता- वविता लिखता है क्या ?

बढ़िया, बढ़िया

मुझे भी गेटे पसंद था

- 'नारायण सुर्वे'



( नारायण सुर्वे मराठी के दलित साहित्यकारों की आवाज़ थे, कुछ महीने पूर्व वे हमारे बीच नहीं रहे )


हरियाणा राजकीय अध्यापक संघ रजि न. ७० के मासिक मुखपत्र अध्यापक समाज july 2011 से साभार

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