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Saturday, February 6, 2010

जुल्मतों के दौर में

कमजोरियां
तुम्हारी कोई नहीं थी
मेरी थी एक
मैं करता था प्यार .


बर्तोत्ल्ट ब्रेख्त  की यह कविता मानवता को पसंद करने वालों को प्यार करने वालो को बहुत पसंद होगी एक तरफ जन्हा प्यार पर हर फिल्म हित सुपरहिट हो रही है प्यार करने वालो पर किस्से लोकनाट्य के रूप में प्रस्तुत   किये जाते हैं वन्ही प्यार करने वालों को सरेआम क़त्ल कर दिया जाता है बाकायदा पुलिस कस्टडी   में भी ह्त्या को अंजाम दिया जाता है फिर तथाकथित समाज सुधारक पगड़ बाँध कर कातिलों को सम्मानित करते हैं प्रेमियों कियो तो बात दूर हद पार वंहा हो जाती है जब ये अपने असंवैधानिक असंवेदनशील फैंसले लेती है पति पत्नी को भाई बहन बनाने के फरमान जारी कर दिए जाते हैं बस में ट्रेन में जन्हा भी देखो लोगों में इन पंचायतो की आलोचना सुय्नाने को मिलती है लेकिन कमजोर सरकारी तंत्र के चलते प्रभुत्ववादी इन पगाद्धारियों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया जाता है सामाजिक मसला कहकर सरकार भी अपनी जिम्मेवारी से बचती नज़र आती हैं आने वाली १० फरवरी को ब्रेख्त का जन्मदिन है जिन्होंने जुल्मतों के दौर में जुल्मतों के गीत गाने का आह्वान किया था अपना सारा जीवन अंधेरों से लड़ते हुए लगा दिया उन्हें सची सर्धांजलि यही होगी की हम सब भी मिलकर जुल्मतों के खिलाफ उठ कर लड़ने के लिए तैयार हो जाए अपने जैसो को ढूँढने की कोशिश कर रहे जो इस मुहीम में पहले से लगे हुए हैं उनका सहयोग करें .

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