
हरियाणवी सांग और नाटक सुनने में थोडा अजीब लग सकता है लेकिन यह भी सही है की दोनों ही रंगमंच की विधा हैं एक लोक नाट्य शैल्ली है एक सीधे तोर पर मंचीय और नुक्कड़ रंगमंच से जुडी है लेकिन यदि सांग और नाटक की के अन्दर की कुछ बातों का जिक्र हम करें तो यह अंतर भी हमें नाटकीय और दोनों के बीच के सम्बन्ध को दर्शाता है जैसे की सामान्य तोर पर संगीत का इस्तेमाल नाटक में भी होता है लेकिन नाटक संवाद परधान होते हैं और सांग संगीत प्रधान नाटक में कोरस होता है सांग में भी कोरस का काम साजिन्दे करते है साथ ही टेक बोलने वाले भी होते हैं
नाटक में अक्स्सर एक सूत्रधार होता है सांग में भी मुख्या संगी जिसे बेड़ेबंद कहते हैं सूत्रधार की भूमिका निभाता है संवाद भी दोनों विधाओं में बोले जाते हैं .बहुत से नाटकों में खासकर पहले के पारम्परिक नाटकों में मसखरा भी एक पात्र होता था सांग में यह भूमिका नकलची अदा करता है .
छायाचित्र : अमित 'मनोज' द्वारा
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