विकास
अब भी बचे हैं दिए
जगमगाते हैं झोंपड़ीनुमा घरों में
परों को मोड़कर सीने से लगाए
सो रहे बच्चे अक्सर जाग जाते हैं
पास से गुजरती रेलगाड़ी की आवाज़ सुनकर
दिन भर भी
घर्र घर्रर धरर धरर ....झूँ ..झप... की आवाज़
पास के हाईवे से आती रहती है
बिजली की तारें
इनसे बचाकर ही निकली हैं
इन्हें मान लिया गया है
भारत की सांस्कृतिक धरोहर
और वे इसे ऐसे ही रखना चाहते हैं संरक्षित
विकास उनसे बाई पास ही किया जाता है
5 comments:
wonderful !
sateek rachna.
oh maarmik rachna
इस पोस्ट के लिेए साधुवाद
wyatha se upaji kavita hi vyatha ka shaman bhi karti hai. badhai. aur achhi chijo ki aasha ho rahi hai.
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