एक तो रात बहुत लम्बी
उस पर यादों के नुकीले खंजर
दिन तो ढल जायेगा काम में
कल फिर होगा मौत का मंजर
जब से रूठे हो सुखा हूँ
हरा भरा था हो गया बंजर
सपने हुए किनारे लहरों संग
छोड़ दिया क्यों बिच समंदर
कब तक बात निहारु पिया की
दीखता नहीं कुछ बाहर अन्दर
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