हर तरफ हैं मुश्किलें
पहाड़ सी
छाती पे रखा है पत्थर
बहुत भारी
उजाला नहीं आता नज़र
मेरे भीतर की खोह में
झाँक नहीं पाया मैं
वह अँधेरी रहस्यमयी
गुफा सी लगती है
आदि और अंत भी होता है
गुफा की तरह ही
जिसे समझते हुए भी रहते हैं अनजान
इसके आदि और अंत से
हम झाड लेते हैं पल्ला
उन सवालों की तरह
जो समझ ना आने पर
बन जाते हैं सर का दर्द
फिर बंद हो जाता है
मुस्किल का मुस्किल लगना ही
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आदि और अंत भी होता है
गुफा की तरह ही
जिसे समझते हुए भी रहते हैं अनजान
सार्थक बात कही ।
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