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Saturday, December 19, 2009

मुश्किलें


मुश्किलें 

हर तरफ हैं मुश्किलें 
पहाड़ सी 
छाती पे रखा है पत्थर 
बहुत भारी 
उजाला नहीं आता नज़र 
मेरे भीतर की खोह में
झाँक नहीं पाया मैं 
वह अँधेरी रहस्यमयी 
गुफा सी लगती है

आदि और अंत भी होता है 

गुफा की तरह ही 
जिसे समझते हुए भी रहते हैं अनजान
इसके आदि और अंत से 
हम झाड लेते हैं पल्ला 
उन सवालों की तरह 
जो समझ ना आने पर

                                                                                     बन जाते हैं
सर का दर्द
फिर बंद हो जाता है 
मुस्किल का मुस्किल लगना ही

1 comment:

Vinashaay sharma said...

आदि और अंत भी होता है
गुफा की तरह ही
जिसे समझते हुए भी रहते हैं अनजान
सार्थक बात कही ।

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