ब्लॉगवार्ता

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Sunday, June 19, 2011

तेरी रजा से

तेरी रजा से
तेरी रजा से महकते हैं
तेरी रजा से चहकते हैं
छायी  हैं जो मदहोशी
जाने कैसी ये बेहोशी
तेरी रजा से

बहती हैं जो हवाएं
तेरी उनमें हैं सदाएं
सारा आलम गुनगुने
जीवन भी अब खिलखिलाए
तेरी रजा से

तेरे बिन सब सुना लागे
तेरी चाह  में दौड़े भागे
दिल में मेरे तू समाया
हर तरफ तेरा ही साया

फिर भी क्यूँ
तडपता हु
भटकता हु

तेरी रजा से

आंसुओं की धार बहती
ज्यों साहिल पे रेत रहती
धो लेते  हैं गम भी सारे
तेरी यादों के सहारे

सब है तेरा
मेरा है क्या
अ मेरे खुदा

तेरी रजा से

गीत


यादों के पन्ने

सफ़र में मित्र बनी एक प्यारी सी छोटी सी दोस्त गीतांजलि जिसकी यादें जिंदा हैं अब तक 

कुछ बातें और एक छोटी सी कविता

काफी दिन हो गए दिल की बात दिल में ही रहती है मन ही नहीं करता की लिखें इस बीच बहुत साड़ी घटनाएं घटी सामग्री बहुत है लेकिन दिमाग में ऐसा भी नहीं है के शब्दों का अभाव है पर जाने क्यों एक आलस्य है जो मेरी रचनात्मकता को लगतार कुंद करता जा रहा है आज थोडा सा प्रयास कर रहा हु वापस लौटना चाहता हु अपनी दुनिया में मेरी दुनिया जो मुझ से शुरू हो होकर मेरे लेखन पर समाप्त हो जाती है प्रतिक्रियाएं भी मिलती हैं सुझाव भी मिलते हैं खैर..... मैं अब और नहीं पकाना चाहता बस यूँही भादाश निकलने का मन कर रहा था

मैं और मेरी कविता
आज कल रहतें  है नितांत अकेले में
दोनों एक दुसरे को देते हैं सहारा
ज़िन्दगी कट रही है
कविता सिमट रही है
दोनों ढूँढ़ते है
उसको जो काट सके
इस चुभते अकेलेपन को
और गंभीरता से आलोचना कर
तराशे मुझे और मेरी कविता दोनों को

Sunday, February 27, 2011

एक नई शुरुआत: ग़ज़ल

एक नई शुरुआत: ग़ज़ल

ग़ज़ल

पीना  ज़लालत हो  गया  है
जीना ज़हालत हो गया है

लगता नहीं की मैं रहता हूँ
घर मानो अदालत हो गया है

दर दर की ठोकर खायी क्या मिला
हर पेशा गलाज़त हो गया है

तुम जो आये दर पर   कुछ दे न सका
प्यार भी लगता सियासत हो गया है

कैसे कटती है ऐसे में मत पूछ
जीना मरने की महोलत हो गया है

ख़याल

ख़याल

उबलते है
सपनो को मरता हुआ देखकर
पकने लगता है
आक्रोश
नारों की गूंज 
लगती है फटे हुए
प्रशैर  कुकर के झन्नाटे की तरह
खाली उबलना कब तक चलेगा
पकने पकाने की अपनी एक
सीमा होती है



Wednesday, December 15, 2010

हिसाब

में  देखता  हु 
खुद को आटे के साथ गूंथते
घिसे हैं मेरे हाथ
बर्तनों को मांझते हुए भी
झाड़ू पोंछा कर 
चमक उठता हु 
फर्श की तरह में भी
चखता हु स्वाद 
जली रोटी या सब्जी में 
नमक मिर्च के बिगड़े अनुपात का
कमर को सीधा करते हुए 
में लगा पता हु ठीक ठीक हिसाब 
उनके तथाकथित कामों का 

साथी

मेरे बारे में