पीना ज़लालत हो गया है
जीना ज़हालत हो गया है
लगता नहीं की मैं रहता हूँ
घर मानो अदालत हो गया है
दर दर की ठोकर खायी क्या मिला
हर पेशा गलाज़त हो गया है
तुम जो आये दर पर कुछ दे न सका
प्यार भी लगता सियासत हो गया है
कैसे कटती है ऐसे में मत पूछ
जीना मरने की महोलत हो गया है
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