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Friday, May 13, 2016

चुभन




कोई रातों को उजली करदो
घना अंधेरा चुभता बहुत है

खाक मिली आजादी हमको
गुलाम सवेरा चुभता बहुत है

मेरा कहां कोई महल मकां पर
आलिशान बसेरा चुभता बहुत है

दुश्मन मारे है अलग बात वो
खंजर तेरा चुभता बहुत है




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