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Friday, May 13, 2016
Friday, February 27, 2015
ओवर टेक
भीड़ भड़ाके के इस शहर में
जब गाड़ी पर गाड़ी और बंदे पर बंदा
चढने को है
जहां कानों के पास झूंऊऊऊऊ की आवाज छोड़
कर जाता है कोई
ओवर टेक
बेशक आप की तेज होती धड़कनें
सिर्फ आप ही सुन सकते हैं
अपने चेहरे के उड़े हुए सफेद रंग को
जहां सिर्फ आप ही देख सकते हैं
ऐसे में एक लंबी सांस लेकर
सहन करना सीख लें सब
ओवर टेक नियती बन गए हैं
सड़क से होकर दफ्तरों तक पंहुच गए हैं
ओवर टेक
दुर्घटना की संभावना हमेशा बनी रहती है
Monday, February 16, 2015
महोब्बत के गुनहगार
आज महोब्बत के हम गुनहगार हुए
जो कहते थे अपनी जान बेजार हुए
अपने दिल में बसाया था हमने उन्हें
और वो समझे कंधो पर सवार हुए
दो कदम ही तो साथ चले थे हम
और उन्हें लगा वो हम पर भार हुए
मालूम ना था उलफ़त जलील करती है
बस इस बात पर गीले रुख्सार हुएFriday, February 6, 2015
घर वापसी
आओ हमारे भूले भटको
घर वापस आओ
ईसाइयों ने तुम्हें रोटी दी कपड़ा दिया शिक्षा
दी
लेकिन तुम्हारा भगवान छीन लिया
लालच देकर थमा दी तुम्हारे हाथों में
मोमबत्तियां
तुम्हें चर्च में प्रार्थना करते देख
हमें बहुत याद आते हो तुम
कैसे तुम
मंदिरों के बाहर से ही नजरों को झुकाए
खड़े खड़े झूका लेते थे शीष
हमारे भगवान का आशीर्वाद पाने को
अब हम किसे मंदिरों में जाने से रोकें
तुम वापस आ जाओ बस
और हां जो
मस्जिदों में जाने लगे उन्हें भी वापस बुला लाना
कहना मदरसों में तो आतंकी कैंप चल रहे हैं
देखो इनके मौलवी फतवे जारी कर रहे हैं
यहां भी तुम रहे तो दलित ही
ब्राह्मण तो नहीं हुए
अशरफ अजलफ
सिया सुन्नी का झगड़ा यहां भी तो है
आ जाओ घर वापस
हमारी वर्ण व्यवस्था को बनाए रखने के लिए जरुरी
है
तुम्हारी घर वापसी
देखो बड़ी मुश्किल से सालों बाद
हमारे अच्छे दिन आए हैं
घर वापस आ जाओ भूले भटको
सुबह का भूला शाम को घर आए तो उसे भूला नहीं
कहते
Tuesday, September 11, 2012
रिवाज
रिवाज एक
रिवाज है लड़की के लिए
लड़का देखने जाते हैं
लड़की के दादा बाप भाई रिश्तेदार
लड़की की जोड़ी के वर के लिए
लड़की देख लेती है कभी कभी कोई चित्र
लड़के का मिल जाता है कभी कभी
दुल्हे का मोबाइल नंबर भी
कभी कभी लड़की को यह भी नसीब नहीं होता
लड़के का रंग रूप शिक्षा दीक्षा चाल चलन
तय करती हैं
सरकारी नौकरी जमीन जायदाद या
पुस्तैनी कारोबार अच्छा खासा
लड़की को करना पड़ता है कबुल
जोड़ी के वर को
उसकी उम्र चाहे दोगुनी ही क्यों न हो
उसकी शिक्षा चाहे आधी ही क्यों न हो
हो सकता है लड़की के लिए वह
अब तक का भयानक चेहरा भी
रिवाज दो
आज से पति ही परमेश्वर है
परमेश्वर दहला देता है देह को
पहली ही रात में
स्वीकार ली जाती है
उसकी सत्ता
देवता खुश होते हैं इस समय
दो आत्माओं के मिलन में
आनंदित होते हैं
आलाप विलाप की संयुक्त ध्वनियों से
सार्थक होती है सम्भोग से समाधी की यात्रा
काम से आध्यात्म
बलात्कार के सामाजिक प्रमाणपत्र
से शुरू होती है
ग्रहस्थ जीवन की यात्रा
रिवाजों के रथ पर
रिवाज तीन
उम्र के आखरी पड़ाव में भी उसे वह भयानक
ही दिखाई देता है
डाली थी जिसके गले में
वर माला नाक को सिकोड़ते हुए
ग्लानिमय हृदय के साथ
रिवाज है लड़की के लिए
लड़का देखने जाते हैं
लड़की के दादा बाप भाई रिश्तेदार
लड़की की जोड़ी के वर के लिए
लड़की देख लेती है कभी कभी कोई चित्र
लड़के का मिल जाता है कभी कभी
दुल्हे का मोबाइल नंबर भी
कभी कभी लड़की को यह भी नसीब नहीं होता
लड़के का रंग रूप शिक्षा दीक्षा चाल चलन
तय करती हैं
सरकारी नौकरी जमीन जायदाद या
पुस्तैनी कारोबार अच्छा खासा
लड़की को करना पड़ता है कबुल
जोड़ी के वर को
उसकी उम्र चाहे दोगुनी ही क्यों न हो
उसकी शिक्षा चाहे आधी ही क्यों न हो
हो सकता है लड़की के लिए वह
अब तक का भयानक चेहरा भी
रिवाज दो
आज से पति ही परमेश्वर है
परमेश्वर दहला देता है देह को
पहली ही रात में
स्वीकार ली जाती है
उसकी सत्ता
देवता खुश होते हैं इस समय
दो आत्माओं के मिलन में
आनंदित होते हैं
आलाप विलाप की संयुक्त ध्वनियों से
सार्थक होती है सम्भोग से समाधी की यात्रा
काम से आध्यात्म
बलात्कार के सामाजिक प्रमाणपत्र
से शुरू होती है
ग्रहस्थ जीवन की यात्रा
रिवाजों के रथ पर
रिवाज तीन
उम्र के आखरी पड़ाव में भी उसे वह भयानक
ही दिखाई देता है
डाली थी जिसके गले में
वर माला नाक को सिकोड़ते हुए
ग्लानिमय हृदय के साथ
Wednesday, September 5, 2012
लम्बी रात तेरी याद
एक तो रात बहुत लम्बी
उस पर यादों के नुकीले खंजर
दिन तो ढल जायेगा काम में
कल फिर होगा मौत का मंजर
जब से रूठे हो सुखा हूँ
हरा भरा था हो गया बंजर
सपने हुए किनारे लहरों संग
छोड़ दिया क्यों बिच समंदर
कब तक बात निहारु पिया की
दीखता नहीं कुछ बाहर अन्दर
Monday, September 3, 2012
मेरी नयी रचना
यंहा दश्त ही
दश्त है रास्ता नजर आया नहीं
पत्तों की चरमराहट से दिल घबराया नहीं
नयी घोषणा है इस
दश्त की तरक्की की
तूफान तो बाकी वो तो अभी आया नहीं
कोनसे जंगल से आ रही बहस की आवाजें
संसद कब से भंग है उसको तो चलाया नहीं
मेरी परेशानी का सबब जान के वो क्या करेंगे
चुनाव अभी दूर हैं बिगुल तो बजाय नहीं
Sunday, September 2, 2012
Sunday, September 18, 2011
आंधी की आड़ में
आज कल खबरों में खबरे कम आंधी ज्यदा है
खबरें सब कुछ
साफ़ साफ़ दिखाती हैं
आंधी आँखों में धुल झोंकती है
भ्रष्ट शासन से त्रस्त लोगो का गुब्बार
जो स्वच्छ व्यक्तित्व की सहानुभूति में उमड़ा
सडको पर
उसे भी तथाकथित सजग प्रहरियों ने
ब्रांड बनाकर खूब भुनाया
अपनी टी आर पी के लिए
दूसरों के कंधो पर बंदूख चलाना
कोई धन्ना सेठों से सीखे
जो हर बार बच निकलते हैं
आंधी की आड़ में
जगदीप सिंह
खबरें सब कुछ
साफ़ साफ़ दिखाती हैं
आंधी आँखों में धुल झोंकती है
भ्रष्ट शासन से त्रस्त लोगो का गुब्बार
जो स्वच्छ व्यक्तित्व की सहानुभूति में उमड़ा
सडको पर
उसे भी तथाकथित सजग प्रहरियों ने
ब्रांड बनाकर खूब भुनाया
अपनी टी आर पी के लिए
दूसरों के कंधो पर बंदूख चलाना
कोई धन्ना सेठों से सीखे
जो हर बार बच निकलते हैं
आंधी की आड़ में
जगदीप सिंह
Sunday, February 27, 2011
ग़ज़ल
पीना ज़लालत हो गया है
जीना ज़हालत हो गया है
लगता नहीं की मैं रहता हूँ
घर मानो अदालत हो गया है
दर दर की ठोकर खायी क्या मिला
हर पेशा गलाज़त हो गया है
तुम जो आये दर पर कुछ दे न सका
प्यार भी लगता सियासत हो गया है
कैसे कटती है ऐसे में मत पूछ
जीना मरने की महोलत हो गया है
Saturday, June 26, 2010
इस कदर
इस कदर खटकते हैं हम उनकी नज़रों में
हो गए हम भी शामिल उनके भावी खतरों में
खाए जाती है उन्हें बस हमारी चिंता
जिए जा रहे हैं भला हम कैसे कतरों में
सुन लेते हैं कान उनके भीतर तक की बात
उस पर ये भय ना फैले ये सदरों में
उनके हैं सब क ख ग घ और ए बी सी डी भी
फिर भी जाने क्यों जलते हैं ढाई अखरों में
घोंट रहे दम हर घड़ी फिर भी उन्हें चैन कँहा
हो रहे हैं दंग देखकर छाये हमें ख़बरों में
हो गए हम भी शामिल उनके भावी खतरों में
खाए जाती है उन्हें बस हमारी चिंता
जिए जा रहे हैं भला हम कैसे कतरों में
सुन लेते हैं कान उनके भीतर तक की बात
उस पर ये भय ना फैले ये सदरों में
उनके हैं सब क ख ग घ और ए बी सी डी भी
फिर भी जाने क्यों जलते हैं ढाई अखरों में
घोंट रहे दम हर घड़ी फिर भी उन्हें चैन कँहा
हो रहे हैं दंग देखकर छाये हमें ख़बरों में
Thursday, May 20, 2010
gazal
आज हमारे बीच ये हालात कैसे हैं
समझना ही ना चाहो सवालात कैसे हैं
आईने में तुम ही हो तुम में आईना भी है
बहार निकल आने के खयालात कैसे हैं
हो गयी है जिंदगी चीजों के ऊंचे दाम सी
बचे हुए अब अपने दिन रात कैसे हैं
चहरे की झुलसी खाल में धंसी हुई आँखें
पूछती हैं काबू में ज़ज्बात कैसे हैं
लकवा मारे हमको चाह दौर ए सियासत की है
फिर उमड़े जन सैलाब में जन्झावात कैसे हैं
Thursday, April 29, 2010
ग़ज़ल अपनी अपनी
चल चल के पड़े हैं आन्टन फांसो ने पैर फोड़ा है
घिसी हुई है चप्पल पर कब चलना छोड़ा है
हो गया है तन भी भट्ठे की नीली इंट सा
रखे हाथ पेट पर कब लू में जलना छोड़ा है
अब भी बगल में रेडियो बजता है पांथ में
सर पर चढ़ते सूरज ने कब ढलना छोड़ा है
मंडी में लेकर जाता हूँ मेरे खेत का सोना
बनियों की ललचाती नज़रों ने कब छलना छोड़ा है
जाने बाज़ार के भाव जो भोंहे तन गयी
खाली लोटते हाथ को कब मलना छोड़ा है
जोह रहे थे बात जो बच्चे मेरे आने की
चेहरों को उनके देखकर कब खलना छोड़ा है
Friday, April 23, 2010
मनोज बबली को समर्पित
आदम ओ होव्वा की औलाद हैं जब
वंस ए पैदाईश के पैमाने क्या हैं
बहते दरिया में मिली जोशे जुनू की लाश
नाम ए इज्जत हालाक के मायने क्या हैं
दोजख हुआ नसीब जो काफिरे इश्क को
देखें हुजूम ए कौम के तराने क्या हैं
बस बे ख्याले इश्क ही लेते नहीं पनाह
फिर लैला ओ मजनू हीर के फ़साने क्या हैं
मवाद बनने लगी है खाल के निचे
जख्म ए ज़हन से मरहम छुपाने क्या हैं
लहर ए समंदर को भला रोक पाया कौन
ये किस दौर की बात है आज ज़माने क्या हैं
वंस ए पैदाईश के पैमाने क्या हैं
बहते दरिया में मिली जोशे जुनू की लाश
नाम ए इज्जत हालाक के मायने क्या हैं
दोजख हुआ नसीब जो काफिरे इश्क को
देखें हुजूम ए कौम के तराने क्या हैं
बस बे ख्याले इश्क ही लेते नहीं पनाह
फिर लैला ओ मजनू हीर के फ़साने क्या हैं
मवाद बनने लगी है खाल के निचे
जख्म ए ज़हन से मरहम छुपाने क्या हैं
लहर ए समंदर को भला रोक पाया कौन
ये किस दौर की बात है आज ज़माने क्या हैं
Tuesday, April 20, 2010
ग़ज़ल
कैसे कहूं की कशमकश में परेशां है आदमी
महफ़िल ए दौरां की अब वजह बची कँहा
उठ रही है बास हर तरफ ज़र्द शिगुफों की
सोचे जहन में ताजगी की मीठी सुगंध कँहा
हो रहे हैं तार तार रिश्ते हर घड़ी
इंसानी रिश्तों सी अब आबो हवा कँहा
कुढने लगा है 'दीप' भी ज़ुल्मते दौरां में
की वाकई आदमी की जगह बची कँहा
हूँ तलाश में उस राह के निशां मिलें कंही
ज़हने वज़न को भांप लिया जाए पल में जँहा
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