हाम सीधे मूंह
थारे तै नी कह सकदे
के
आपनी ज़मीन बेच खोच कै भाजो
इसपे हाम कब्ज़ा करना चाहवां सां
अक
हामानै फलाने रोलै की रडक
क्युकरे काढणी सै
अक
थाम हामनै फूटी आँख नि सुहान्दे
पाछे सी जिस छोरे की बरात में
हामनै ले गे थे
उस बाबत लडूआ कै चक्कर में हाम नि बोले
ज्यांतै
हाम इब कन्ह्वां सां
थारे छोरे अर छोरी के गोत मिलाएँ सें
ये दोनों तो भाहन भाई सें
इब थाम इस गाम में नि रह सकदे
अर जय रहना सै तो उजड़ कै
हाम किसे का बस्दा ढून्ढ नि देख सकदे
4 comments:
good
achi kavita he
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
kati e rog kaat diya bhai.....
dhanyawaad dosto ise rog to kaatne jaruri sain
are wah tune to sbkuch hi kh diya yaar kuch to bcha rhne deta ye pnchaayti ib bta kis baat ka bhana bnayenge.
achi kvita hai.
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