कुतिया का भोंकना - 1
आज
फिर से
एक बस्ती जला दी गयी
सैंकड़ों खदेड़ दिए गए
अपने घरों से
सब कुछ
मौजूदगी में हुआ
सेवा सुरक्षा सहयोग का
दावा करने वालों के
वे कहते हैं
बात मामूली सी थी
कुतिया भोंकी थी
सब उसी को लेकर हुआ
बाप बेटी की जली लाश चीख रही है
महज़ कुतिया का भोंकना मुद्दा नहीं है
बात है की हमने जुबान क्यों खोली
२
उनकी कुतिया तक का
भोंकना
उन्हें
असहज कर देता है
फिर उनका सबके सामने यूं
सरे आम बोलना
कैसे रास आ सकता है
इसलिए उन्हें कर दिया जाता है
बेदखल
घरों से गाँव से
जिंदगी से भी
3 comments:
सुन्दर रचना ! कुछ अलग हटकर !
बेदखल
जिन्दगी की कीमत क्या कीमती लोगो के सामने
झकझोरती रचना
यही होता है, यही होता आया है।
आपकी अभिव्यक्ति प्रभावी है।
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