इन दिनों ब्लॉग पर कुछ लिख नहीं पाया लेकिन पढ़ा जरुर है उसी की चर्चा आप से कर लेता हूँ अभी दो नाटक और एक उपन्यास एक काव्य संग्रह पढ़ा है सभी की मिलीजुली बात करना चाहता हूँ उपन्यास पढ़ा गोर्की का मेरे विश्विद्यालय जिसमे मुझे ख़ास बात यह लगी जो की गोर्की के अन्य उपन्यासों में भी मिलाती है घटनाओं व्यक्तियों का विस्तृत वर्णन बाल की खाल तक निकाल डालते हैं और अपने विचार को लोगो को बहुत साधारण ढंग से उनकी प्रक्रति के विरोधी पत्रों से ही कहलवाते है अपने पुरे दृष्टिकोण को वे एक अद्रिस्ट धागे से दर्शा देते हैं वन्ही गरिष कर्नाड के नाटक हयवदन में मानवीय रिश्तों को बड़ी नाटकीयता से दर्शा रखा है दवियाशक्ति पर भी व्यंग्य इसमें देखने को मिलता है खासकर मनुष्य की दमित इछाऊ का प्रतीकात्मक नाटक है हालांकि पढने में नाटक कंही कंही बोझिल सा हो जाता है लेकिन नाटकीय दृष्टी से यह एक अछि रचना है और कलाकारों के लिए अपनी रचनात्मकता दिखाने का अच्छा मौक़ा भी नाटक देता है वन्ही शेक्शपिअर का जुलियस सीज़र जिसका हिंदी अनुवाद अरविन्द जी ने किया है काव्यात्मक नाटक है जिसके अनुवाद का काम सम्ब्वाथ काठीन काम है जो उन्होंने बखूबी किया है नाटक के सभी मुख्य पात्र सशक्त हैं लेकिन जिस प्रकार नाटक के बारे में सुरुआत में चर्चा की गयी की महाभारत की याद दिलाता है वगरह वगरह मुझे हज़म नहीं हुई हाँ इस नाटक की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है की कशियास ब्र्तुस आदि जनता का राज्य स्थापित करना चाहते हैं लेकिन वे सीज़र को मारकर भी ऐसा नहीं कर पाते अर्थात उनका रास्ता या उनका फैसला सही नहीं उतरता इसमें मूझे लेखक की कमजोरी भी दिखाएइ देती है लेखक स्वयं भी उलझाव की स्थिति में हैं उनके लगभग सभी नाटको का अंत दुखमय है एक एक कर नाटक का हर पात्र आत्महत्या कर लेता है नाटक का एक अन्य पात्र अन्तनी लगभग हीरो की तरह से नाटक को आगे बढाता है अन्यथा नाटक बीच में ही समाप्त लगता है शक्स्पिअर एक महान लेखक हैं लेकिन उनके इस नाटक की कोई दिशा ना होने की कमी बहुत खलती है अब आपको रोमंतिसिस्म में लिए चलता हूँ आलोक श्रीवास्तव का काव्य संग्रह वेरा उन सापनो की कथा कहो पढ़ा प्रेम के विषय पर अछि कवितायें हैं लेखक प्रकृति के बहुत करीब नज़र आते हैं उनकी कविताओं में ऋतुओं का वर्णन काफी है ख़ास तौर पर आज के दौर में जब की प्रेम के विरोध में भुत से पग्गड़ अपने तुर्रे ऊंचे किये हुए हैं खाफ की खाफ प्रेम करने वालों के खिलाफ है असी में कवी का खुलकर अपनी बात कहना मायने रखता है उनकी कविताओं ने प्रेम को बाज़ार के प्रभाव से बचाने की कोशिश की है हालांकि बहुत सी कविताओं में सब्दओं की जादूगरी सब्दों की पुनरावर्ती देखने को मिलती है कनेर के फूल अंजुली में पानी भरने की चाह बहुत सारे अन्य बिम्ब उनकी चाह को दर्शाते हैं उनके एकल प्रेम को दर्शाने वाली कवितायें भी बहुत हैं इस प्रकार कुल मिलाकर इतने दिन ब्लॉग पर उपस्थित ना होने की थोड़ी सी वजह यह है
Sunday, March 14, 2010
Sunday, February 14, 2010
हरियाणवी सांग और नाटक

नाटक में अक्स्सर एक सूत्रधार होता है सांग में भी मुख्या संगी जिसे बेड़ेबंद कहते हैं सूत्रधार की भूमिका निभाता है संवाद भी दोनों विधाओं में बोले जाते हैं .बहुत से नाटकों में खासकर पहले के पारम्परिक नाटकों में मसखरा भी एक पात्र होता था सांग में यह भूमिका नकलची अदा करता है .
छायाचित्र : अमित 'मनोज' द्वारा
Friday, February 12, 2010
हरियाणवी संगीत की बात
हरियाणा और हरियाणा की संस्कृति उसमे भी हरियाणवी
संगीत की बात की जाये तो आज जन्हा भी देखो उसकी तूती बोल रही है वर्तमान फिल्मों में हरियाणवी पात्र हरयाणवी संवाद यंहा तक हरियाणवी धुनें भी खासी पर्योग में लायी जा रही हैं फिल्म ओये लक्की ओये में तू राजा की राजदुलारी काफी प्रशिद्ध हुई . फिल्म देव डी में भी ओ परदेशी गीत में हरियाणवी का आभाष होता है फिल्म दे दना दन में मैं तो मरी होती आज मरी होती लड्ग्या बैरी बिछुआ लोकगीत की धून पर एक गीत यू वान्ना किस में या मिस में असे करके एक
गीत है ये प्रयास तो हिंदी फिल्मो में हरयाणवी संगीत की
बढती लोक्पिर्यता को दर्शाते हैं हाल ही मैं सोनू निगम द्वारा फिल्म स्तरीकर में एक गीत चम् चम् गाया गया है जिसका
आलाप रा रा रा राआआआआ ऋ ऋ ऋ ऋ राआआआआ रप ताप रा रा रा हरयाणवी संगीत जो अक्सर हरयाणवी वाद्य वृन्द में बजाय जाता है से लिया गया लगता है आजकल फिल्मो में पात्रों की बात करें तो हाल ही में आ रही फिल्मो में कोई ना कोई पात्र हरयाणवी मिल ही जाता है ख़ास कर हाजिर जवाबी की जन्हा भी जरुरत होती है या हंसी मखोल की उसके लिए हरयाणवी पात्र की जरुरत होती है.
संगीत की बात की जाये तो आज जन्हा भी देखो उसकी तूती बोल रही है वर्तमान फिल्मों में हरियाणवी पात्र हरयाणवी संवाद यंहा तक हरियाणवी धुनें भी खासी पर्योग में लायी जा रही हैं फिल्म ओये लक्की ओये में तू राजा की राजदुलारी काफी प्रशिद्ध हुई . फिल्म देव डी में भी ओ परदेशी गीत में हरियाणवी का आभाष होता है फिल्म दे दना दन में मैं तो मरी होती आज मरी होती लड्ग्या बैरी बिछुआ लोकगीत की धून पर एक गीत यू वान्ना किस में या मिस में असे करके एक

बढती लोक्पिर्यता को दर्शाते हैं हाल ही मैं सोनू निगम द्वारा फिल्म स्तरीकर में एक गीत चम् चम् गाया गया है जिसका
आलाप रा रा रा राआआआआ ऋ ऋ ऋ ऋ राआआआआ रप ताप रा रा रा हरयाणवी संगीत जो अक्सर हरयाणवी वाद्य वृन्द में बजाय जाता है से लिया गया लगता है आजकल फिल्मो में पात्रों की बात करें तो हाल ही में आ रही फिल्मो में कोई ना कोई पात्र हरयाणवी मिल ही जाता है ख़ास कर हाजिर जवाबी की जन्हा भी जरुरत होती है या हंसी मखोल की उसके लिए हरयाणवी पात्र की जरुरत होती है.
Wednesday, February 10, 2010
kurukshetra vishvvidyalya sahitya manch lekhak se milie karyakaram
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Saturday, February 6, 2010
जुल्मतों के दौर में
कमजोरियां
तुम्हारी कोई नहीं थी
मेरी थी एक
मैं करता था प्यार .
बर्तोत्ल्ट ब्रेख्त की यह कविता मानवता को पसंद करने वालों को प्यार करने वालो को बहुत पसंद होगी एक तरफ जन्हा प्यार पर हर फिल्म हित सुपरहिट हो रही है प्यार करने वालो पर किस्से लोकनाट्य के रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं वन्ही प्यार करने वालों को सरेआम क़त्ल कर दिया जाता है बाकायदा पुलिस कस्टडी में भी ह्त्या को अंजाम दिया जाता है फिर तथाकथित समाज सुधारक पगड़ बाँध कर कातिलों को सम्मानित करते हैं प्रेमियों कियो तो बात दूर हद पार वंहा हो जाती है जब ये अपने असंवैधानिक असंवेदनशील फैंसले लेती है पति पत्नी को भाई बहन बनाने के फरमान जारी कर दिए जाते हैं बस में ट्रेन में जन्हा भी देखो लोगों में इन पंचायतो की आलोचना सुय्नाने को मिलती है लेकिन कमजोर सरकारी तंत्र के चलते प्रभुत्ववादी इन पगाद्धारियों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया जाता है सामाजिक मसला कहकर सरकार भी अपनी जिम्मेवारी से बचती नज़र आती हैं आने वाली १० फरवरी को ब्रेख्त का जन्मदिन है जिन्होंने जुल्मतों के दौर में जुल्मतों के गीत गाने का आह्वान किया था अपना सारा जीवन अंधेरों से लड़ते हुए लगा दिया उन्हें सची सर्धांजलि यही होगी की हम सब भी मिलकर जुल्मतों के खिलाफ उठ कर लड़ने के लिए तैयार हो जाए अपने जैसो को ढूँढने की कोशिश कर रहे जो इस मुहीम में पहले से लगे हुए हैं उनका सहयोग करें .
तुम्हारी कोई नहीं थी
मेरी थी एक
मैं करता था प्यार .
बर्तोत्ल्ट ब्रेख्त की यह कविता मानवता को पसंद करने वालों को प्यार करने वालो को बहुत पसंद होगी एक तरफ जन्हा प्यार पर हर फिल्म हित सुपरहिट हो रही है प्यार करने वालो पर किस्से लोकनाट्य के रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं वन्ही प्यार करने वालों को सरेआम क़त्ल कर दिया जाता है बाकायदा पुलिस कस्टडी में भी ह्त्या को अंजाम दिया जाता है फिर तथाकथित समाज सुधारक पगड़ बाँध कर कातिलों को सम्मानित करते हैं प्रेमियों कियो तो बात दूर हद पार वंहा हो जाती है जब ये अपने असंवैधानिक असंवेदनशील फैंसले लेती है पति पत्नी को भाई बहन बनाने के फरमान जारी कर दिए जाते हैं बस में ट्रेन में जन्हा भी देखो लोगों में इन पंचायतो की आलोचना सुय्नाने को मिलती है लेकिन कमजोर सरकारी तंत्र के चलते प्रभुत्ववादी इन पगाद्धारियों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया जाता है सामाजिक मसला कहकर सरकार भी अपनी जिम्मेवारी से बचती नज़र आती हैं आने वाली १० फरवरी को ब्रेख्त का जन्मदिन है जिन्होंने जुल्मतों के दौर में जुल्मतों के गीत गाने का आह्वान किया था अपना सारा जीवन अंधेरों से लड़ते हुए लगा दिया उन्हें सची सर्धांजलि यही होगी की हम सब भी मिलकर जुल्मतों के खिलाफ उठ कर लड़ने के लिए तैयार हो जाए अपने जैसो को ढूँढने की कोशिश कर रहे जो इस मुहीम में पहले से लगे हुए हैं उनका सहयोग करें .
Tuesday, January 26, 2010
गणतंत्र दिवस
गणतंत्र दिवस के अवसर पर बहार निकलने का मौका मलिया सब कुछ सूना सूना सा नज़र आ रहा था सडकें सुनी गलियां सुनी हर तरफ पुलिस की रेकॉर्डेड चेतावनियाँ sunaaei दे रही थी मेरे उठाने से पहले ही राष्ट्रपति का भाषण एवं परेड सब कुछ ख़त्म हो चुका था समाचारों में पढ़ा कोहरा नहीं ढक पाया गणतंत्रता दिवस के जोश को लेकिन तस्वीरें कोहरे से जरुर धुंधली नज़र आ रही थी सच बताऊँ तो जोश असल में गणतंत्रता दिवस का रहा भी नहीं क्योंकि मैंने जिन्हें भी गणतंत्रता की बधाईइ भेजी उनमे से एक दो का ही प्रतिउत्तर मिला दूसरा manhgaaei इतनी हो गयी है की त्यौहार की तरह मना ही नहीं सकते मीठा खाना मिर्चों से भी तीखा लगता है roji roti की fikr में परेड dekhna sabke naseeb का भी नहीं hota fir aarthik mandi से itnaa bhayavah mahaul banaa huaa है sarkaar हो ya neeji parivaar हर तरफ band है rojgaar kahne को तो kah dete hain ham पर mandi का asar नहीं लेकिन andar की baat ye है asar में koi kasar भी नहीं khair ab gantantrta दिवस selebrate तो karnaa था kaise karein samjh नहीं pa रहा koi desh bhagti film dekhi jaye ya bar में masti की jaye, लेकिन in sabse sona uchit lagaa क्योंकि aaj हर koi so रहा है sona aaraam की नहीं mukti का sadhan नज़र aata है bekhabar हो kar karvatein badalte rahna kanhi behtar लगता है samaaj को karaahate hue dekhane से.
Saturday, December 19, 2009
मुश्किलें
हर तरफ हैं मुश्किलें
पहाड़ सी
छाती पे रखा है पत्थर
बहुत भारी
उजाला नहीं आता नज़र
मेरे भीतर की खोह में
झाँक नहीं पाया मैं
वह अँधेरी रहस्यमयी
गुफा सी लगती है
आदि और अंत भी होता है
गुफा की तरह ही
जिसे समझते हुए भी रहते हैं अनजान
इसके आदि और अंत से
हम झाड लेते हैं पल्ला
उन सवालों की तरह
जो समझ ना आने पर
बन जाते हैं सर का दर्द
फिर बंद हो जाता है
मुस्किल का मुस्किल लगना ही
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