एक नई शुरुआत: रिवाज
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Saturday, October 20, 2012
Tuesday, September 11, 2012
रिवाज
रिवाज एक
रिवाज है लड़की के लिए
लड़का देखने जाते हैं
लड़की के दादा बाप भाई रिश्तेदार
लड़की की जोड़ी के वर के लिए
लड़की देख लेती है कभी कभी कोई चित्र
लड़के का मिल जाता है कभी कभी
दुल्हे का मोबाइल नंबर भी
कभी कभी लड़की को यह भी नसीब नहीं होता
लड़के का रंग रूप शिक्षा दीक्षा चाल चलन
तय करती हैं
सरकारी नौकरी जमीन जायदाद या
पुस्तैनी कारोबार अच्छा खासा
लड़की को करना पड़ता है कबुल
जोड़ी के वर को
उसकी उम्र चाहे दोगुनी ही क्यों न हो
उसकी शिक्षा चाहे आधी ही क्यों न हो
हो सकता है लड़की के लिए वह
अब तक का भयानक चेहरा भी
रिवाज दो
आज से पति ही परमेश्वर है
परमेश्वर दहला देता है देह को
पहली ही रात में
स्वीकार ली जाती है
उसकी सत्ता
देवता खुश होते हैं इस समय
दो आत्माओं के मिलन में
आनंदित होते हैं
आलाप विलाप की संयुक्त ध्वनियों से
सार्थक होती है सम्भोग से समाधी की यात्रा
काम से आध्यात्म
बलात्कार के सामाजिक प्रमाणपत्र
से शुरू होती है
ग्रहस्थ जीवन की यात्रा
रिवाजों के रथ पर
रिवाज तीन
उम्र के आखरी पड़ाव में भी उसे वह भयानक
ही दिखाई देता है
डाली थी जिसके गले में
वर माला नाक को सिकोड़ते हुए
ग्लानिमय हृदय के साथ
रिवाज है लड़की के लिए
लड़का देखने जाते हैं
लड़की के दादा बाप भाई रिश्तेदार
लड़की की जोड़ी के वर के लिए
लड़की देख लेती है कभी कभी कोई चित्र
लड़के का मिल जाता है कभी कभी
दुल्हे का मोबाइल नंबर भी
कभी कभी लड़की को यह भी नसीब नहीं होता
लड़के का रंग रूप शिक्षा दीक्षा चाल चलन
तय करती हैं
सरकारी नौकरी जमीन जायदाद या
पुस्तैनी कारोबार अच्छा खासा
लड़की को करना पड़ता है कबुल
जोड़ी के वर को
उसकी उम्र चाहे दोगुनी ही क्यों न हो
उसकी शिक्षा चाहे आधी ही क्यों न हो
हो सकता है लड़की के लिए वह
अब तक का भयानक चेहरा भी
रिवाज दो
आज से पति ही परमेश्वर है
परमेश्वर दहला देता है देह को
पहली ही रात में
स्वीकार ली जाती है
उसकी सत्ता
देवता खुश होते हैं इस समय
दो आत्माओं के मिलन में
आनंदित होते हैं
आलाप विलाप की संयुक्त ध्वनियों से
सार्थक होती है सम्भोग से समाधी की यात्रा
काम से आध्यात्म
बलात्कार के सामाजिक प्रमाणपत्र
से शुरू होती है
ग्रहस्थ जीवन की यात्रा
रिवाजों के रथ पर
रिवाज तीन
उम्र के आखरी पड़ाव में भी उसे वह भयानक
ही दिखाई देता है
डाली थी जिसके गले में
वर माला नाक को सिकोड़ते हुए
ग्लानिमय हृदय के साथ
Friday, September 7, 2012
यशपाल की कहानियां
मुझे फिल्मे देखने का काफी शोक है अब मॉल में जाकर शोक पूरा करने की अपनी हैशियत है नहीं इसलिए कई बार विकल्प भी अपनाना पड़ता आज कल यशपाल की कहानियां पढ़ रहा हूँ सच बताऊ फिल्म की पूर्ति हो रही है कहानियों में घटनाएं पात्र सारे दृश्यमान होकर आप से रु ब रु होने लगते हैं जितना समय लगता है उसमें दो तीन कहानियां पढ़ ही लेता हूँ कमाल की कहानियां हैं रविन्द्रनाथ टैगोर, प्रेमचंद,यशपाल और भीष्म साहनी अब पसंदीदा कहानीकार हो गए हैं यशपाल की कहानियों में एक विशेष बात यह लगती है की कहानी में वर्णन कथाकार नहीं बलिक पात्र करते हैं ऐसा बहुत ही कम साहित्यकार कर पते हैं समय लगा तो कहानियों की विस्तृत समीक्षा भी आपके समक्ष होगी फ़िलहाल इतना ही आप भी पढना चाहे तो आधार प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गयी मात्र ५० रूपये कीमत है
Wednesday, September 5, 2012
लम्बी रात तेरी याद
एक तो रात बहुत लम्बी
उस पर यादों के नुकीले खंजर
दिन तो ढल जायेगा काम में
कल फिर होगा मौत का मंजर
जब से रूठे हो सुखा हूँ
हरा भरा था हो गया बंजर
सपने हुए किनारे लहरों संग
छोड़ दिया क्यों बिच समंदर
कब तक बात निहारु पिया की
दीखता नहीं कुछ बाहर अन्दर
Monday, September 3, 2012
मेरी नयी रचना
यंहा दश्त ही
दश्त है रास्ता नजर आया नहीं
पत्तों की चरमराहट से दिल घबराया नहीं
नयी घोषणा है इस
दश्त की तरक्की की
तूफान तो बाकी वो तो अभी आया नहीं
कोनसे जंगल से आ रही बहस की आवाजें
संसद कब से भंग है उसको तो चलाया नहीं
मेरी परेशानी का सबब जान के वो क्या करेंगे
चुनाव अभी दूर हैं बिगुल तो बजाय नहीं
Sunday, September 2, 2012
Tuesday, February 28, 2012
सच
यह सच है कि वह मरेगा भी जो पैदा हुआ
तो क्या जीना छोड़ दें
सच यह भी है जो जीने कि कोशिश करेगा
मार दिया जायेगा
तो क्या जीना छोड़ दें
सच यह भी है जो जीने कि कोशिश करेगा
मार दिया जायेगा
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