तुम
धुँआ बनकर
विलीन हो जाती हो तुम
यादों के असीम नीले नभ में
फिर जाने किन घाटियों से उमड़ आती हो
घटायें लेकर
तुम बरसी या में भीगा
होश था ही कब
बस उड़ रहा हु
धुँआ बनकर
विलीन हो जाती हो तुम
यादों के असीम नीले नभ में
फिर जाने किन घाटियों से उमड़ आती हो
घटायें लेकर
तुम बरसी या में भीगा
होश था ही कब
बस उड़ रहा हु
कभी धुँआ
कभी बदल
तो कभी तेज़ हवाओं की तरह
पत्ता पत्ता झरकर
ठूंठ सा रह जाता हूँ में
जैसे याद नहीं
कोई आंधी बनकर गुजरती हो
कभी बदल
तो कभी तेज़ हवाओं की तरह
पत्ता पत्ता झरकर
ठूंठ सा रह जाता हूँ में
जैसे याद नहीं
कोई आंधी बनकर गुजरती हो