ब्लॉगवार्ता

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Saturday, March 5, 2016

कन्हैया


एक लाल झंडे का लाल है
बटा बड़ा बेमिसाल है
बातां के लावै फोवे से 
कन्हैया नहीं कमाल है

बात करै आजादी की
अर शोषण की बर्बादी की
देशद्रोही इसनै कह रे
यू देश भक्ति की मिसाल है

गरीबां के हक की बात करै
पूंजी आल्या के गळ पै हाथ धरै
ल्याणा चाहवै समाजवाद नै
इब संघियां का बुरा हाल है

सारी बात का जवाब सै इसपै
इब मोदी बुझै बता किसपै
क्यूकरे भी ना आया काबू
इब टोको किसकी मजाल है

Tuesday, February 23, 2016

आग लगी हरियाणे मैं


ले कै नै आरक्षण भाईयो कुणसे झंडे गाड़ दिये
सदियां तै जो बसैं ते सुख तै सबके ढूंड उजाड़ दिये
और कसर के रहगी इब तो छोडो खूंड बजाणे रै
किसा आरक्षण मांग्या थामनै आग लगी हरियाणे मैं


के कसूर था उस विधवा का वा ढाबा अपणा चला री थी
दो छोरी सैं उस पै जिनके ब्याह के सपने सजा री थी
ढाबा उसका फूंक दिया इब ओटै कौण उलाहणे रै 
किसा आरक्षण मांग्या थामनै आग लगी हरियाणे मैं


बड़ी मेहनत तै बड़ी मुश्किल तै कारोबार जम्या करै
खड़ी फसल नै कोए फूक ज्या सोचो ज्यब के बण्या करै
इन सदमां तै जो भी मरैगा, पाप चढ़ै स्यर थारे रै
किसा आरक्षण मांग्या थामनै आग लगी हरियाणे मैं


कितणे खेड़े नगर चैन के आज धूआंधार पड़े सैं 
माणस कै स्यामी माणस आज जाति नै ठांए खड़े सैं
जात पात मैं बटज्या ज्यब माणस के कसर रह मरज्याणे मैं
किसा आरक्षण मांग्या थामनै आग लगी हरियाणे मैं


कल्ले थाम बी दोषी कोनी सरकार भी खड़ी लखावै थी
खट्टर पट्टर की ट्विटर तै अपील शांति की आवै थी
खड़ी-खड़ी देखै थी सेना यें सूने पड़े थे थाणे रै
किसा आरक्षण मांग्या थामनै आग लगी हरियाणे मैं


हजारों करोड़ की संपत्ती कै थमनै आग लगाई
थारी जिद्द मैं सूनी गोद नै देख कै रोवैं माई
नेताओं का के बिगड़ग्या ये न्यूं ए बरड़ाणे रै
किसा आरक्षण मांग्या थामनै आग लगी हरियाणे मैं


महाभारत पाच्छै पांडवां ज्यूं थामै गूठे दे दे रोओगे
थारै लोवै धोरै कोए फटकै नी फेर कितकी नौकरी टोहोगे
जो कंपनी फैक्टरी खड़ी करैं वैं इब पक्के घबराणे रै
किसा आरक्षण मांग्या थामनै आग लगी हरियाणे मैं


जगदीप सिंह कह रैथल आला ब्होत दुखी सूं भाई
माणस की बस दो ए जाति आदमी और लुगाई
माणस बणज्यो के लागै थारा भाईचारा बणाने मैं
किसा आरक्षण मांग्या थामनै आग लगी हरियाणे मैं

Monday, February 22, 2016

जल रहा है हरियाणा

http://www.hamarivani.com/update_my_blog.php?blg=http://geet7553.blogspot.com/

देखो कैसी आग में जल रहा है हरियाणा 
ये किसके कदमों निशां पे चल रहा है हरियाणा

हक की नहीं लड़ाई ये गुंडई होने लगी
अपनों की लाश पे देखो मचल रहा है हरियाणा

जात पात के फेर में उलझ कर ही रह गए
भाईचारे के संस्कार से टळ रहा है हरियाणा

दुकान लूटो मकान फूंको कर लो पूरे सारे अरमान
शासन सरकार की छुट्टी पर चल रहा है हरियाणा

होश में आ जाओ मेरे साथी भटके नौजवान
दाल भले ही ना गले पर गळ रहा है हरियाणा

जगदीप सिंह

Saturday, February 28, 2015

कामरेड अविजित

अविजित रॉय के लिए..... जो बांग्लादेश में कट्टरपंथियों का शिकार हुए...

कामरेड अविजित
आज से पहले मैं तुम्हारे बारे में नहीं जानता था
तुम्हारी पत्नी के हाथों में सिमटा
खून से सना तुम्हारा शरीर देखकर
ऐसा लग रहा है
बांग्लादेश की धरती को सींचेगा
ये खून
खुरदरी और बंजर होती जमीन करेगा तैयार
पैदा होंगे इसी खून से
लाल लाल लहराते झंडे
तुम्हारे शरीर के हर टुकड़े से पैदा होगा एक नारा
तुम पर किये हर वार के खिलाफ
खड़ा होगा आंदोलन
सच तो ये है कि
वे तुम्हारी हत्या नहीं कर पाएंगे
हर हमले के साथ तुम
जी उठोगे और
हमेशा बने रहोगे अविजित


----------- जगदीप सिंह

Friday, February 27, 2015

ओवर टेक

भीड़ भड़ाके के इस शहर में
जब गाड़ी पर गाड़ी और बंदे पर बंदा
चढने को है
जहां कानों के पास झूंऊऊऊऊ की आवाज छोड़
कर जाता है कोई
ओवर टेक
बेशक आप की तेज होती धड़कनें
सिर्फ आप ही सुन सकते हैं
अपने चेहरे के उड़े हुए सफेद रंग को
जहां सिर्फ आप ही देख सकते हैं
ऐसे में एक लंबी सांस लेकर
सहन करना सीख लें सब
ओवर टेक नियती बन गए हैं
सड़क से होकर दफ्तरों तक पंहुच गए हैं
ओवर टेक
दुर्घटना की संभावना हमेशा बनी रहती है







ओ.... कवि



ओ.... कवि
मेरे हिस्से की रोटी लिखो
अब चांद को रोटी कहने से पेट नहीं भरता
बादलों का राग मुझ तक नहीं पंहुचा
हवा में झूमते पेड़-पौधे
कलकल कर बहती नदियां, झरनें
बागों में कूकती कोयलें
चुभती हैं कानों को
फटे गलों से नसों को खींचती हुई
निकलने वाली नारों की गूंज से ही
हमें तसल्ली मिलती है
फूलों की खूशबू नहीं
चिलचिलाती धूप में बहते पसीने की बू
भाती हैं हमें
प्रतीक और बिंब की भाषा
बहुत देर से समझ आती है
आंदोलन का गान लिखो कवि
संघर्षों के अधिग्रहण
शब्दों के अध्यादेश
बहुत हो चुके
मेरी खातिर जो कहना चाहते हो
साफ साफ कहो कवि


Monday, February 16, 2015

महोब्बत के गुनहगार

आज महोब्बत के हम गुनहगार हुए
जो कहते थे अपनी जान बेजार हुए

अपने दिल में बसाया था हमने उन्हें
और वो समझे कंधो पर सवार हुए

दो कदम ही तो साथ चले थे हम
और उन्हें लगा वो हम पर भार हुए

मालूम ना था उलफ़त जलील करती है
बस इस बात पर गीले रुख्सार हुए

साथी

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