हवस नहीं देखती उम्र, पहनावा, रंग, रूप वह सिर्फ नोचना जानती है शरीर को उसे नहीं सुनाई देती चीख, पुकार, अनुरोध, दुहाई कुचलना जानती है अरमानों को वह परिचित नहीं है अंजाम से वह चाहती है उन्माद को विसर्जित करना नहीं देखती हवस उन्माद से कितनी जिंदगियां रुंधी हैं
काफी दिन हो गए दिल की बात दिल में ही रहती है मन ही नहीं करता की लिखें इस बीच बहुत साड़ी घटनाएं घटी सामग्री बहुत है लेकिन दिमाग में ऐसा भी नहीं है के शब्दों का अभाव है पर जाने क्यों एक आलस्य है जो मेरी रचनात्मकता को लगतार कुंद करता जा रहा है आज थोडा सा प्रयास कर रहा हु वापस लौटना चाहता हु अपनी दुनिया में मेरी दुनिया जो मुझ से शुरू हो होकर मेरे लेखन पर समाप्त हो जाती है प्रतिक्रियाएं भी मिलती हैं सुझाव भी मिलते हैं खैर..... मैं अब और नहीं पकाना चाहता बस यूँही भादाश निकलने का मन कर रहा था