कार्ल मार्क्स
मेरी पहली हड़ताल में
मार्क्स मुझे यूँ मिला
जुलुस के बीच
मेरे कंधे पर उनका बनैर था
जानकी अक्का ने कहा - 'पैचाना इसको'
ये अपना मारकस बाबा
जर्मनी में जन्मा, बोरा भर किताब लिखा
और इंग्लॅण्ड की मिट्टी में मिला
सन्यासी को क्या बाबा
सारी ज़मीन एक च
तेरे जैसे उसके भी चार कच्चे बच्चे थे
मेरी पहली हड़ताल में
मार्क्स मुझे यूँ मिला
बाद में मैं एक सभा में बोल रहा था
- इस मंदी का कारण क्या है ?
गरीबी का गोत्र क्या है ?
फिर से मार्क्स सामने आया
बोला मैं बतलाता हूँ
और फिर बोलता ही रहा धडाधड
परसों एक गेट सभा में भाषण सुनते खडा था
मैंने कहा - "अब इतिहास के नायक हम ही हैं
इसके बाद के सभी चरित्रों के भी"
तब उसने ही जोर से ताली बजाई
खिलखिलाकर हंसते, आगे आते
कंधे पर हाथ रख कर बोला
' अरे कविता- वविता लिखता है क्या ?
बढ़िया, बढ़िया
मुझे भी गेटे पसंद था
-
'नारायण सुर्वे'
(
नारायण सुर्वे मराठी के दलित साहित्यकारों की आवाज़ थे, कुछ महीने पूर्व वे हमारे बीच नहीं रहे )
हरियाणा राजकीय अध्यापक संघ रजि न. ७० के मासिक मुखपत्र अध्यापक समाज july 2011 से साभार