ब्लॉगवार्ता

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Saturday, April 24, 2010

कुतिया का भोंकना

कुतिया का भोंकना - 1

आज 
फिर से 
एक बस्ती जला दी गयी
सैंकड़ों  खदेड़ दिए गए 
अपने घरों से 
सब कुछ
मौजूदगी में हुआ 
सेवा सुरक्षा सहयोग का 
दावा करने वालों के 
वे कहते हैं
बात मामूली सी थी 
कुतिया भोंकी  थी
सब उसी को लेकर हुआ 
बाप बेटी की जली लाश चीख रही है
महज़ कुतिया का भोंकना मुद्दा नहीं है 
बात है की हमने जुबान क्यों खोली
२ 


उनकी कुतिया तक का 
भोंकना 
उन्हें 
असहज कर देता है 
फिर उनका सबके सामने यूं 
सरे आम बोलना 
कैसे रास आ सकता है 
इसलिए उन्हें कर दिया जाता है 
बेदखल 
घरों से गाँव से 
जिंदगी से भी 

Friday, April 23, 2010

मनोज बबली को समर्पित

आदम ओ होव्वा की औलाद हैं जब
वंस ए पैदाईश के पैमाने क्या हैं 

बहते दरिया में मिली जोशे जुनू की लाश 
नाम ए इज्जत हालाक के मायने क्या हैं 

दोजख हुआ नसीब जो काफिरे इश्क को 

देखें हुजूम ए कौम के तराने क्या हैं

बस बे ख्याले इश्क ही लेते नहीं पनाह 
फिर लैला ओ मजनू हीर के फ़साने क्या हैं

मवाद बनने लगी है खाल के निचे 
जख्म ए ज़हन से मरहम छुपाने क्या हैं 

लहर ए समंदर को भला रोक पाया कौन
ये किस दौर की बात है आज ज़माने क्या हैं 

Tuesday, April 20, 2010

ग़ज़ल

कैसे कहूं की कशमकश में परेशां है आदमी 
महफ़िल ए दौरां की अब वजह बची कँहा 

उठ रही है बास  हर तरफ ज़र्द शिगुफों की 
सोचे जहन में ताजगी की मीठी सुगंध कँहा 

हो रहे हैं तार तार रिश्ते हर घड़ी 
 इंसानी रिश्तों सी अब आबो हवा कँहा 

कुढने लगा है 'दीप' भी ज़ुल्मते दौरां में 
 की वाकई आदमी की जगह बची कँहा 

हूँ तलाश में उस राह के निशां मिलें कंही 
ज़हने वज़न को भांप लिया जाए पल में जँहा


Wednesday, April 7, 2010

पंचाती

हाम सीधे मूंह
थारे तै नी कह सकदे
के
आपनी ज़मीन बेच खोच कै भाजो
इसपे  हाम  कब्ज़ा करना चाहवां  सां
अक
हामानै  फलाने रोलै की रडक
क्युकरे काढणी सै
अक
थाम हामनै फूटी आँख नि सुहान्दे
पाछे सी जिस छोरे की बरात में
हामनै ले गे थे
उस बाबत लडूआ  कै चक्कर में हाम नि बोले
ज्यांतै
हाम इब कन्ह्वां सां
थारे छोरे अर छोरी के गोत मिलाएँ सें
ये दोनों तो भाहन भाई सें
इब थाम इस गाम में नि रह सकदे
अर जय रहना सै तो उजड़ कै
हाम किसे का बस्दा ढून्ढ नि देख सकदे

अवसादग्रस्त

वे बढ़ा रहे हैं
भूख बेकारी शोषण
और हम हाथ पर हाथ धरे
बैठे हैं
अवसादग्रस्त

चीटियाँ

चीटियाँ बेहतर होती हैं
मनुष्यों से
क्योंकि वे
संगठित रहती हैं

Sunday, March 14, 2010

इतने दिन में कँहा था

इन दिनों ब्लॉग पर कुछ लिख नहीं पाया लेकिन पढ़ा जरुर है उसी की चर्चा आप से कर लेता हूँ अभी दो नाटक और एक उपन्यास एक काव्य संग्रह पढ़ा है सभी की मिलीजुली बात करना चाहता हूँ उपन्यास पढ़ा गोर्की का मेरे विश्विद्यालय जिसमे मुझे ख़ास बात यह लगी जो की गोर्की के अन्य उपन्यासों में भी मिलाती है घटनाओं व्यक्तियों का विस्तृत वर्णन बाल की खाल तक निकाल डालते हैं और अपने विचार को लोगो को बहुत साधारण ढंग से उनकी प्रक्रति के विरोधी पत्रों से ही कहलवाते है अपने पुरे दृष्टिकोण  को वे एक अद्रिस्ट धागे से दर्शा देते हैं वन्ही गरिष कर्नाड के नाटक हयवदन में मानवीय रिश्तों को बड़ी नाटकीयता से दर्शा रखा है दवियाशक्ति पर भी व्यंग्य इसमें देखने को मिलता है खासकर मनुष्य की दमित इछाऊ का प्रतीकात्मक नाटक है हालांकि पढने में नाटक कंही कंही बोझिल सा हो जाता है लेकिन नाटकीय दृष्टी से यह एक अछि रचना है और कलाकारों के लिए अपनी रचनात्मकता दिखाने का अच्छा मौक़ा भी नाटक देता है वन्ही शेक्शपिअर का जुलियस सीज़र जिसका हिंदी अनुवाद अरविन्द जी ने किया है काव्यात्मक नाटक है जिसके अनुवाद का काम सम्ब्वाथ काठीन काम है जो उन्होंने बखूबी किया है नाटक के सभी मुख्य पात्र सशक्त हैं लेकिन जिस प्रकार नाटक के बारे में सुरुआत में चर्चा की गयी की महाभारत की याद दिलाता है वगरह वगरह मुझे हज़म नहीं हुई हाँ इस नाटक की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है की कशियास ब्र्तुस आदि जनता का राज्य स्थापित करना चाहते हैं लेकिन वे सीज़र को मारकर भी ऐसा नहीं कर पाते अर्थात उनका रास्ता या उनका फैसला सही नहीं उतरता इसमें मूझे लेखक की कमजोरी भी दिखाएइ देती है लेखक स्वयं भी उलझाव की स्थिति में हैं उनके लगभग सभी नाटको का अंत दुखमय है एक एक कर नाटक का हर पात्र आत्महत्या कर लेता है नाटक का एक अन्य पात्र अन्तनी लगभग हीरो की तरह से नाटक को आगे बढाता है अन्यथा नाटक बीच में ही समाप्त लगता है शक्स्पिअर एक महान लेखक हैं लेकिन उनके इस नाटक की कोई दिशा ना होने की कमी बहुत खलती है अब आपको रोमंतिसिस्म में लिए चलता हूँ आलोक श्रीवास्तव का काव्य संग्रह वेरा उन सापनो की कथा कहो पढ़ा प्रेम के विषय पर अछि कवितायें हैं लेखक प्रकृति के बहुत करीब नज़र आते हैं उनकी कविताओं में ऋतुओं का वर्णन काफी है ख़ास तौर पर आज के दौर में जब की प्रेम के विरोध में भुत से पग्गड़ अपने तुर्रे  ऊंचे किये हुए हैं खाफ की खाफ प्रेम करने वालों के खिलाफ है असी में कवी का खुलकर अपनी बात कहना मायने रखता है उनकी कविताओं ने प्रेम को बाज़ार के प्रभाव से बचाने की कोशिश की है हालांकि बहुत सी कविताओं में सब्दओं की जादूगरी सब्दों की पुनरावर्ती देखने को मिलती है कनेर के फूल अंजुली में पानी भरने की चाह बहुत सारे अन्य बिम्ब उनकी चाह को दर्शाते हैं उनके एकल प्रेम को दर्शाने वाली कवितायें भी बहुत हैं इस प्रकार कुल मिलाकर इतने दिन ब्लॉग पर उपस्थित ना होने की थोड़ी  सी वजह यह है

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