ब्लॉगवार्ता

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Sunday, February 14, 2010

हरियाणवी सांग और नाटक

हरियाणवी सांग और नाटक सुनने में थोडा  अजीब लग सकता है लेकिन यह भी सही है की दोनों  ही रंगमंच की विधा हैं एक लोक नाट्य शैल्ली है एक सीधे तोर पर मंचीय और नुक्कड़ रंगमंच से जुडी है लेकिन यदि सांग और नाटक की के अन्दर की कुछ बातों का जिक्र हम करें तो यह अंतर भी हमें नाटकीय और दोनों के बीच के सम्बन्ध को दर्शाता है जैसे की सामान्य तोर पर संगीत का इस्तेमाल नाटक में भी होता है लेकिन नाटक संवाद परधान होते हैं और सांग संगीत प्रधान नाटक में कोरस होता है सांग में भी कोरस का काम साजिन्दे करते है साथ ही टेक बोलने वाले भी होते हैं

नाटक में अक्स्सर एक सूत्रधार होता है सांग में भी मुख्या संगी जिसे बेड़ेबंद कहते हैं सूत्रधार की भूमिका निभाता है संवाद भी दोनों विधाओं में बोले  जाते हैं .बहुत से नाटकों में खासकर पहले के पारम्परिक नाटकों में मसखरा भी एक पात्र होता था  सांग में यह भूमिका नकलची अदा करता है .




                                     छायाचित्र  :  अमित 'मनोज' द्वारा

Friday, February 12, 2010

हरियाणवी संगीत की बात

हरियाणा और हरियाणा की संस्कृति उसमे भी हरियाणवी
संगीत की बात की जाये तो आज जन्हा भी देखो उसकी तूती बोल रही है वर्तमान फिल्मों में हरियाणवी पात्र हरयाणवी संवाद यंहा तक हरियाणवी धुनें भी खासी पर्योग में लायी जा रही हैं फिल्म ओये लक्की ओये  में तू राजा की राजदुलारी काफी प्रशिद्ध  हुई . फिल्म देव डी में भी ओ परदेशी गीत में हरियाणवी का आभाष होता है फिल्म दे दना दन में मैं तो मरी होती आज मरी होती लड्ग्या बैरी बिछुआ लोकगीत की धून पर एक गीत यू वान्ना किस में या मिस में असे करके एक
गीत है ये  प्रयास तो हिंदी फिल्मो में हरयाणवी संगीत की

बढती लोक्पिर्यता को दर्शाते हैं हाल ही मैं सोनू निगम द्वारा फिल्म स्तरीकर में एक गीत चम् चम् गाया गया है जिसका
आलाप रा रा रा राआआआआ ऋ ऋ ऋ ऋ राआआआआ रप ताप रा रा रा  हरयाणवी संगीत जो अक्सर हरयाणवी वाद्य वृन्द में बजाय जाता है से लिया गया लगता है आजकल फिल्मो में पात्रों की बात करें तो हाल ही में आ रही फिल्मो में कोई ना कोई पात्र  हरयाणवी मिल ही जाता है ख़ास कर हाजिर जवाबी की जन्हा भी जरुरत होती है या हंसी मखोल की उसके लिए हरयाणवी पात्र  की जरुरत होती है.

Wednesday, February 10, 2010

kurukshetra vishvvidyalya sahitya manch lekhak se milie karyakaram


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Saturday, February 6, 2010

जुल्मतों के दौर में

कमजोरियां
तुम्हारी कोई नहीं थी
मेरी थी एक
मैं करता था प्यार .


बर्तोत्ल्ट ब्रेख्त  की यह कविता मानवता को पसंद करने वालों को प्यार करने वालो को बहुत पसंद होगी एक तरफ जन्हा प्यार पर हर फिल्म हित सुपरहिट हो रही है प्यार करने वालो पर किस्से लोकनाट्य के रूप में प्रस्तुत   किये जाते हैं वन्ही प्यार करने वालों को सरेआम क़त्ल कर दिया जाता है बाकायदा पुलिस कस्टडी   में भी ह्त्या को अंजाम दिया जाता है फिर तथाकथित समाज सुधारक पगड़ बाँध कर कातिलों को सम्मानित करते हैं प्रेमियों कियो तो बात दूर हद पार वंहा हो जाती है जब ये अपने असंवैधानिक असंवेदनशील फैंसले लेती है पति पत्नी को भाई बहन बनाने के फरमान जारी कर दिए जाते हैं बस में ट्रेन में जन्हा भी देखो लोगों में इन पंचायतो की आलोचना सुय्नाने को मिलती है लेकिन कमजोर सरकारी तंत्र के चलते प्रभुत्ववादी इन पगाद्धारियों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया जाता है सामाजिक मसला कहकर सरकार भी अपनी जिम्मेवारी से बचती नज़र आती हैं आने वाली १० फरवरी को ब्रेख्त का जन्मदिन है जिन्होंने जुल्मतों के दौर में जुल्मतों के गीत गाने का आह्वान किया था अपना सारा जीवन अंधेरों से लड़ते हुए लगा दिया उन्हें सची सर्धांजलि यही होगी की हम सब भी मिलकर जुल्मतों के खिलाफ उठ कर लड़ने के लिए तैयार हो जाए अपने जैसो को ढूँढने की कोशिश कर रहे जो इस मुहीम में पहले से लगे हुए हैं उनका सहयोग करें .

Tuesday, January 26, 2010

गणतंत्र दिवस


गणतंत्र दिवस के अवसर पर बहार निकलने का मौका मलिया सब कुछ सूना सूना सा नज़र आ रहा था सडकें सुनी गलियां सुनी हर तरफ पुलिस की रेकॉर्डेड चेतावनियाँ sunaaei  दे रही थी मेरे उठाने से पहले ही राष्ट्रपति  का भाषण एवं परेड सब कुछ ख़त्म हो चुका था समाचारों में पढ़ा कोहरा नहीं ढक पाया गणतंत्रता दिवस के जोश को लेकिन तस्वीरें कोहरे से जरुर धुंधली नज़र आ रही थी सच बताऊँ तो जोश असल में गणतंत्रता दिवस का रहा भी नहीं क्योंकि मैंने जिन्हें भी गणतंत्रता की बधाईइ भेजी उनमे से एक दो का ही प्रतिउत्तर मिला दूसरा manhgaaei  इतनी हो गयी है की त्यौहार की तरह मना ही नहीं सकते मीठा खाना मिर्चों से भी तीखा लगता है roji roti की fikr में  परेड dekhna sabke naseeb का भी नहीं hota fir aarthik mandi से itnaa bhayavah mahaul banaa huaa है sarkaar हो ya neeji parivaar हर तरफ band है rojgaar kahne को तो kah dete hain ham पर mandi का asar नहीं लेकिन andar की baat ye है asar में koi kasar भी नहीं khair ab gantantrta दिवस selebrate तो karnaa था kaise karein samjh नहीं pa रहा koi desh bhagti film dekhi jaye ya bar में masti की jaye, लेकिन in sabse sona uchit lagaa क्योंकि aaj हर koi so रहा है sona aaraam की नहीं mukti का sadhan नज़र aata है bekhabar हो kar karvatein badalte rahna kanhi behtar लगता है samaaj को karaahate hue dekhane से.

Saturday, December 19, 2009

मुश्किलें


मुश्किलें 

हर तरफ हैं मुश्किलें 
पहाड़ सी 
छाती पे रखा है पत्थर 
बहुत भारी 
उजाला नहीं आता नज़र 
मेरे भीतर की खोह में
झाँक नहीं पाया मैं 
वह अँधेरी रहस्यमयी 
गुफा सी लगती है

आदि और अंत भी होता है 

गुफा की तरह ही 
जिसे समझते हुए भी रहते हैं अनजान
इसके आदि और अंत से 
हम झाड लेते हैं पल्ला 
उन सवालों की तरह 
जो समझ ना आने पर

                                                                                     बन जाते हैं
सर का दर्द
फिर बंद हो जाता है 
मुस्किल का मुस्किल लगना ही

Friday, December 18, 2009


कभी कभी कुछ चित्र एसे बने बानाए  होते हैं जिन पर जो भी कल्पना हम करें वही सार्थक सी लगती जिन्हें हम गौर से देखने लगते हैं चलते चलते अचानक जब मैं रुका तो देखा कुछ है इस समय जब मैं रात को इस भव्य श्री क्रिशन और अर्जुन के रथ पर रौशनी को पड़ते देखता हूँ ये रथ वैसा नहीं है जैसा हम इसे दिन में देखते है चित्र में तो ऐसा लगता है जैसे यह दौड़ रहा है इसी के निचे जो चित्र है उस रस्ते से लगातार चार साल से गुजरता आ रहाहूं लेकिन जितना सुकून इस रस्ते पर मिलता है कंही नहीं मिलता यह है कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से ब्र्हम्सरोवर जाने वाला रास्ता यही एकमात्र जगह बची है जन्हाअ प्रकृति के दर्शन होते हैं लगता है थोड़े दिनों में यह जगह भी छीन जाएगी मनुस्य्ह की आव्स्य्हक्ताएं इन्हें ख़त्म कर यहाँ पर कंक्रीट के जंगल स्थापित करना चाहती है तीसरा जो चित्र आपको नज़र आ रहा है जो आप इसमें देखना चाहोगे वही नज़र आएगा ये आपकी कल्पना शक्ति पर निर्भर करता है पराकरतिक रूप से कभी कभी इतिफाक से कुछ इसी चीजें हमें मिल जाती हैं जिन्हें एक क्षण के लिए खड़े होकर देखने का मन करता है लेकिन भागदौड़ की इस जिंदगी में प्रकृति से रिश्ता जोड़ने का हमारे पास समाया कान्हा है
जगदीप singh

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