ब्लॉगवार्ता

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Friday, December 18, 2009


कभी कभी कुछ चित्र एसे बने बानाए  होते हैं जिन पर जो भी कल्पना हम करें वही सार्थक सी लगती जिन्हें हम गौर से देखने लगते हैं चलते चलते अचानक जब मैं रुका तो देखा कुछ है इस समय जब मैं रात को इस भव्य श्री क्रिशन और अर्जुन के रथ पर रौशनी को पड़ते देखता हूँ ये रथ वैसा नहीं है जैसा हम इसे दिन में देखते है चित्र में तो ऐसा लगता है जैसे यह दौड़ रहा है इसी के निचे जो चित्र है उस रस्ते से लगातार चार साल से गुजरता आ रहाहूं लेकिन जितना सुकून इस रस्ते पर मिलता है कंही नहीं मिलता यह है कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से ब्र्हम्सरोवर जाने वाला रास्ता यही एकमात्र जगह बची है जन्हाअ प्रकृति के दर्शन होते हैं लगता है थोड़े दिनों में यह जगह भी छीन जाएगी मनुस्य्ह की आव्स्य्हक्ताएं इन्हें ख़त्म कर यहाँ पर कंक्रीट के जंगल स्थापित करना चाहती है तीसरा जो चित्र आपको नज़र आ रहा है जो आप इसमें देखना चाहोगे वही नज़र आएगा ये आपकी कल्पना शक्ति पर निर्भर करता है पराकरतिक रूप से कभी कभी इतिफाक से कुछ इसी चीजें हमें मिल जाती हैं जिन्हें एक क्षण के लिए खड़े होकर देखने का मन करता है लेकिन भागदौड़ की इस जिंदगी में प्रकृति से रिश्ता जोड़ने का हमारे पास समाया कान्हा है
जगदीप singh

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